"सामंजस्य" published in grihshobha september second 2016

सामंजस्य
रमोला के हाथ जल्दी जल्दी काम निपटा रहें थें पर आँखे, रसोई की खिड़की से बाहर गेट की तरफ  आस लगाये ताक रही थीं. चाय की घूँट लेते हुए वह सैंडविच टोस्टर में ब्रेड लगाने  लगी.
"श्रेयांश जल्दी नहा कर निकलो वरना देर हो जाएगी ", बेटे को उसने आवाज दिया .
"मम्मा मेरे मोज़े नहीं मिल रहें ", श्रेयांश ने आवाज लगाई.
मोज़े खोजने के चक्कर में चाय ठंडी हो गयी. बेटे को तैयार होने में मदद करने ,रमोला उसके कमरे की तरफ भागी . उसके बस्ते में सब चेक किया और पानी की बोतल को भरने लगी .
"चलो बेटा दूध -कॉर्नफ़्लेक्स जल्दी ख़तम करो, ये केला भी खाना है "
" मम्मा आज लंच बॉक्स में क्या दिया है ?", श्रेयांश के इस सवाल से वह बड़ा घबराती थी .
"सैंड विच ", धीरे से उसने कहा क्यूंकि आगे क्या होने वाला है उसे पता ही था .हुआ भी वही .....
" उफ़ ! आपने कल भी यही दिया था . मैं नहीं ले जाऊंगा. रेहान की मम्मी हर दिन उसे बदल बदल कर चीजें देती हैं लंच बॉक्स में ", श्रेयांश अब पैर पटक जिद्द करने लगा था .
"मालती दीदी दो दिनों से नहीं आ रही है ,जिस दिन वह आएगी मैं अपने राजा बेटा  को नयी चीजे दूंगी ,उससे बनवा कर. मान जा मुन्ना मेरा. अच्छा ये रूपये लो और कैंटीन में मनपसंद कुछ खा लेना ."
पर्स से रमोला ने पैसे देते हुए श्रेयांश को कहा. रेहान की गृहणी माँ से मात खाने से बचने का अब यही एक उपाय शेष था. सोचा तो था कि रात  में ही कुछ नया सोच, श्रेयांश की लंच बॉक्स की तयारी करके ही सोएगी पर कल दफ्तर से लौटते  लौटते इतनी देर हो गयी कि खाना बाहर  से ही पैक करा लेते आई .
खिड़की से बाहर देखा गेट पर कोई आहट  नहीं थी. घड़ी की सुइयां आपस में दौड़ लगाते हुए सरपट भाग रहीं थी. सात बजने को हैं , स्कूल बस आती ही होगी . बेटे को पुचकारते हुए वह सीढ़ियों से नीचे भागी .
उसकी जीवन रेखा मालती का कहीं कोई नामो निशान नहीं था. ये कामवाली बाइयाँ भी अपनी अहमियत खूब समझती हैं अत : मनमानी करने से बाज़ नहीं आती हैं . मालती पिछले तीन सालों से उसके यहाँ काम कर रही थी. सुबह छ बजते हाज़िर हो जाती और चक्करघिन्नी की तरह नाचती, उसके जाने के वक़्त नौ बजे तक लगभग सारे काम निपटा लेती . खाना भी वह काफी अच्छा  बनाती थी, उसीकी बदौलत लंच बॉक्स में हरदिन नए स्वादिष्ट व्यंजन रहते थें. शाम छ बजे उसके दफ्तर से लौटते, वह फिर हाज़िर रहती. चाय के गर्म प्याले के साथ मालती कुछ स्नैक्स भी जरूर थमाती .
  मालती की बदौलत ही वह घर के कामों से बेफिक्र रहती थी ,सो दफ्तर के कामों में वह अच्छे से वक़्त दे पाती. नतीजा तीन सालों में दो प्रमोशन. अब तो वह रोहन से दोगुनी सैलरी पाती थी. परन्तु काम के बोझ तले उसका दम निकले जा रहा था. बढती सैलरी अपने साथ बेहिसाब जिम्मेदारियां ले कर आ गयी थी . हाँ ,साथ ही साथ घर में सुख सुविधाएं  भी बढ़ गयी थी. तभी रोहन और रमोला इस पॉश इलाके में इतने बड़े फ्लैट को खरीद पाने में सक्षम हुए थें . मालती के रहते उसे कभी किसी और नौकर या दूसरी कामवाली की जरूरत महसूस नहीं हुई थी .लगभग उसी की उम्र की औरत होगी मालती और काम बिलकुल उसी लगन से करती जैसे वह अपनी कंपनी के लिए करती थी. इसी से रमोला हमेशा उसका खास ध्यान रखती और घर के एक सदस्य जैसा ही सम्मान देती. परन्तु इधर कुछ महीनों से मालती का रवैया कुछ बदलते जा रहा था . सुबह अक्सर देर से आती या नहीं ही आती. बिना बताये दो-तीन दिनों तक गायब रहती . अचानक उसके ना आने से रमोला परेशान  हो जाती और पूरी गृहस्थी की गाड़ी पटरी से मानों उतर जाती .  पर समयाभाव के चलते रमोला ज्यादा इस मसले में पड नहीं रही थी. मालती के  अनुपस्थिती  में येन केन काम हो ही जाता और जिस दिन वह आती सब संभाल लेती.
                     श्रेयांश को बस में बैठा, रमोला तेजी से सीढियां चढ़ते हुए  घर में घुसी. बिखरी हुई बैठक को अनदेखा कर वह एक बार फिर रसोई में घुस गयी. वह कम से कम दो सब्जियां बना लेना चाहती थी क्यूंकि आज रात उसे लौटने में फिर देर जो होनी थी . हाथ भले छुरी से सब्जियां काट रहें थें पर उसका ध्यान आज ,दफ्तर में होने वाले मीटिंग पर अटका हुआ था . देर रात एक विदेशी क्लाइंट के साथ के एक बड़ी डील के लिए विडियो कांफ्रेंसिंग भी करनी थी . उसके पहले मीटिंग में सारी  बातें तय करनी थी. आधे पौने घंटें में उसने काफी कुछ बना लिया . अब रोहन को उठाना जरूरी था वरना उसका भी देर हो जायेगा , यह सोचते उसने दो प्याली पानी  गैस पर चढ़ा दिया.
                                              रोहन कभी घर के कामों में उसकी हाथ नहीं बंटाता था उलटे हज़ार नखरे भी दिखाता. कल रात भी वह बड़ी देर से आया था , उलझ कर वक़्त जाया न हो सो रमोला ने ज्यादा सवाल जवाब नहीं किये थे . जबकि रोहन का बैंक छह बजे तक बंद हो जाता था . वह  महसूस कर रही थी कि इनदिनों  रोहन के खर्चों में बेहिसाब वृद्धि हुई है. शौक  भी उसके महंगे हो गए थें . आये दिन महंगे होटलों की पार्टियां उसे नहीं भाती, फिर सोचती आखिर हम कमा  किस  लिए हैं . घर और दोनों गाड़ियों के मासिक किश्तों और उसपर बढ़ रहे ब्याज के विषय में सोचती तो उसके काम की गति बढ़ जाती .
"आज तुम श्रेयांश को मम्मी के घर से लाने ही नहीं गएँ, बेचारा इन्तेजार करता वहीँ सो गया था . तुम तो जानते ही हो मम्मी के हार्ट का ऑपरेशन हुआ है , वह श्रेयांश की  देखभाल करने में असमर्थ हैं ", रमोला ने बेहद नरम  लहजे में पूछा था. मन  तो हो रहा था पूछे कि इस बार क्रेडिट कार्ड का बिल इतना अधिक क्यूँ आया ......
पर रोहन फट पड़ा था ,
"हाँ मैं तो बेकार बैठा हूँ , मैडम जी  खुद देर रात तक गुलछर्रे उड़ा घर आयें. जल्दी घर आ कर करूँगा क्या, बच्चे  की  देखभाल ? ",
 रोहन के इस जवाब से वह हतप्रभ हो गयी और चुप रहना ही बेहतर समझा, सर झुकाए लैपटॉप पर काम करती रही. क्लाइंट से मीटिंग के पहले ये प्रेजेंटेशन तैयार कर उसे कल अपने मातहतों को दिखानी जरूरी थी . कनखियों से उसने देखा रोहन सीधे बिस्तर पर ही पसर गया . खून का घूँट पी वह लैपटॉप पर तेजी से उंगलियाँ चलाने लगी.
            चाय बन चुकी थी पर रोहन अभी तक उठा नहीं था . अपनी चाय पी वह दफ्तर जाने के लिए तैयार होने लगी. अपने बिखरे पेपर्स समेटें , लैपटॉप बंद किया और साथ साथ वह नाश्ता भी करती जा रही थी . हलकी गुलाबी फॉर्मल शर्ट के साथ वह किस रंग का पतलून पहने. आज एक खास दिन जो था , कि तभी रोहन की खटर पटर सुनाई  देने लगी .लगता है जाग गया है, यह सोच रमोला उसकी चाय वहीँ जा कर देने की सोची .
"गुड मोर्निंग डार्लिग ! अब जल्दी से चाय पी लो , मैं बस निकलने ही वाली हूँ ",परदे को सरकाते हुए रमोला ने कहा .
"क्या यार जब देखो हड़बड़ी में ही रहती हो , कभी मेरे पास भी बैठ जाया करो ", रोहन  लेटे लेटे ही उसके हाथ को खींचने लगा .
"मुझे चाय नहीं पीनी , मुझे तो रात से ही भूख लगी है. पहले मैं खाऊंगा ",कहते हुए रोहन ने  उसे  बिस्तर पर खींच लिया .
"रोहन ! अब ज्यादा रोमांटिक ना हो , मेरी कमीज पर सलवटें पड़ जाएँगी . छोड़ो मुझे ......नाश्ता और लंच बॉक्स मैंने तैयार कर दिया है . खा लेना, नौ बजने को है , तुम भी तैयार हो जाओ ",कहती रमोला हाथ छुड़ा जाने लगी .
"बाय ...."
मुड़ कर देखा रोहन अभी बिस्तर पर ही था,
" बैंक की नौकरी अच्छी है दस बजे तक जाओ . रोहन दरवाजा बंद कर लो मैं निकल रहीं हूँ ",
 रमोला ने कहा और सीढियां उतर गेराज से कार निकाल दफ्तर की ओर चल पड़ी . रमोला मन ही मन मीटिंग के प्लान बनाती जा रही थी .
"कश्यप को वह विडियो कांफ्रेंसिंग के वक़्त अपने साथ रखेगी , बंदा स्मार्ट है और उसे इस प्रोजेक्ट का पूरा ज्ञान भी है. कपूर को मार्केटिंग डिटेल्स लाने  कहा ही है ,एक बार सब को अपना प्रेजेंटेशन दिखा, उनके विचार जान ले तो फिर फाइनल प्रेजेंटेशन रचना तैयार कर ही लेगी,  सब सही सही सोचे अनुसार हो जाए तो एक प्रोन्नति और पक्का ......",यह सोचते रमोला के अधरों पर मुस्कान फैल गयी .
दफ्तर के गेट के पास पहुँच उसे ध्यान आया कि लैपटॉप ,लंच बॉक्स सहित जरूरी कागजात सब वह घर पर ही छोड आई है . आज इतनी दौड़ भाग थी सुबह से कि निकलते वक़्त तक मन थक चुका था . रमोला ने कार को घर की तरफ घुमा लिया .
कार सड़क पर ही छोड़ वह तेजी से सीढियां चढ़ने  लगी , दरवाजा अभी तक भिड़ा ही हुआ था, हलकी थपकी से ही खुल गयी. बैठक में कदम रखते ही उसे जोर जोर से हंसने की आवाजें सुनाई  दी .
" ओह मितु रानी तुमने आज जी खुश कर दिया ,सारी  भूख मिट गयी . मितु यू आर ग्रेट .......",
 रोहन की आवाज थी .
"साहब जी आप भी ना ........", तो मालती आ चुकी है .
"ओह ! रोहन इसे ही मितु बोल रहा है . पर इस तरह ......."रमोला का सर मानों घूमने लगा .पैर जड़ हो गए , जबान तालू से चिपक गए . उसकी बची-खुची होश की हवा चूड़ियों की खनखनाह्ट और रोहन के ठहाकों ने निकाल  दिया. वह उलटे पावं लौट चली , बिना लैपटॉप लिए ही जा कर कार में बैठ गयी . पूरी दुनिया जोरों से घूमती दिख रही थी, असल में उसके तो पावं तले से जमीन ही खिसक गयी थी .
"मेरे  पीठ पीछे ऐसा कब से चल रहा है ,मुझे तो कुछ पता ही नहीं चला . रोहन मेरे साथ ऐसी बेवफाई  करेगा ,मैं सोच भी नहीं सकती . घर सँभालते सँभालते महरी उसके पति को भी सँभालने लगी. मालती की जुर्रत पर वह तड़प गयी . कब रोहन उससे इतनी दूर  हो गया . वह तो हमेशा हाथ बढ़ाता था , मैं ही झिटक देती थी . उसके प्यार-इजहार की भाषा को मैंने खूब अनसुनी किया है.
 शायद  इस गुनाह के रास्ते पर धकेलने वाली मैं ही हूँ . साथ साथ तो चल रहे थे हम अचानक ये क्या हो गया . शायद साथ नहीं , मैं कुछ ज्यादा तेज चल रही थी ",
" पर मैं तो घर ,पति और बच्चे के लिए ही काम कर रहीं हूँ , उनकी जरूरतें और शौक पूरा हो इसके लिए दिन-रात घर-बाहर मेहनत करती हूँ . क्या रोहन का कोई फ़र्ज़ नहीं , वह अपनी ऐयाशियों के लिए बेवफाई करने की छूट रखता है ?"
 विचारों की अंधड़ में घिर  कार चला वह जाने किधर जा रही थी उसे होश नहीं था . बगल सीट पर रखे मोबाइल पर  दफ्तर से लगातार फोन आ रहें थें . एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी की बेहद उच्च पदासीन रमोला अचानक खुद को हारी हुई लुटी पिटी असहाय महसूस करने लगी . सब कुछ उसे बेमानी लगने लगा ....... कैसी तरक्की के पीछे वो भागी जा रही है . रमोला को अचानक लगा कि उसकी तन्द्रा भंग हुई . पूरा शरीर पसीने से भींग गया . कार का हॉर्न  बजने लगा लगातार ,इतना कि उसके बर्दास्त के बाहर  हो गया .आँखे बंद होने लगी ........
         होश आया तो खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया . सिरहाने रोहन और श्रेयांश बैठे हुए थे . डॉक्टर बता रहें थे कि अचानक रक्तचाप काफी बढ़ जाने से वह बेहोश हो गयी थी . कुछ दिनों के  बाद अस्पताल से उसकी छुट्टी हो गयी . कश्यप और कपूर दफ्तर से उससे मिलने आयें थे . उनकी बातों से लगा कि उसकी अनुपस्थिती में दफ्तर में काफी मुश्किलें आ रहीं हैं . रमोला ने उन्हें आश्वाशन दिया कि बेहतर महसूस करते ही वह दफ्तर आने लगेगी , तबतक घर से स्काइप के जरिये वर्क एट  होम करेगी .
        पिछले कुछ दिनों से रोहन को देख उसे घृणा सी हो जाती , उसदिन की हंसी और चूड़ियों की खन खनाहट की गूँज उसे बेचैन किये रहती .  रोहन को छोड़ने या तलाक जैसी बातें भी उसके दिमाग में आ रहीं थी , फिर मासूम श्रेयांश का चेहरा सामने आ जाता . क्यूँ उसका बचपन अभिशप्त किया जाये. उसके उच्च शिक्षित होने का क्या फायदा यदि वह अपनी ही जिन्दगी की उलझनों को सुलझा न सकें .
               "हार नहीं मानूंगा -रार नहीं ठानूंगा "
एक कवि की ये प्रसिद्ध पंक्ति उसे हमेशा उत्साहित करती थी , विपरीत परिस्थितियों  में  शांति पूर्वक  जूझने  के लिए प्रेरणा देती थी. आज भी वह हार नहीं मानेगी और अपने घर को टूटने से बचा ले जाएगी , ऐसा  उसे  विश्वास था .
 रमोला  अस्पताल में ही थी कि उस की  कॉलेज की एक सहेली उससे मिलने  आई. वह यू एस   में  रहती थी . बातों बातों  में उसने बताया कि वहां तो नौकर दाई मिलते  नहीं सो सारा काम पति-पत्नी मिल कर करतें हैं . रमोला को उसकी बात जंच गयी कि अपने घर का काम करने में शर्म कैसी .
  उसके जाने के बाद,  कुछ सोचते हुए रमोला ने रोहन से  कहा,
" रोहन मैं सोचती हूँ कि मैं नौकरी से इस्तीफा दे दूँ , घर पर  रहूं और तुम्हारी तथा श्रेयांश की देख भाल करूँ. तुम्हारी शिकायत भी दूर हो जाएगी कि मैं बहुत व्यस्त रहतीं हूँ  और  घर  पर ध्यान नहीं देती हूँ "
ये सुनना था कि रोहन मानों हडबडा गया . उसे अपनी औकात का पल भर में भान हो गया . श्रेयांश के मंहगे स्कूल का फीस ,फ्लैट और गाड़ियों के मोटे किश्त ....ये सब तो उसके बूते पूरा होने से रहा. कुछ ही पलों में उसे अपनी सारी ऐयाशियाँ याद आ गयीं .
"नहीं रामी डिअर , नौकरी छोड़ने की बात क्यूँ कर रही हो ? मैं हूँ ना ", हकलाते हुए रोहन ने कहा .
"ताकि तुम अपनी मितु डिअर के साथ गुलछर्रे उड़ा सकों , नहीं मुझे अब घर पर रहना है और किसी महरी को नहीं रखना है ",
रमोला ने तने हुए स्वर में तंज कसा .
रोहन के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी , अब हवा निकलने की उसकी बारी थी . वह घुटनों के बल वहीँ जमीन पर बैठ गया और रमोला से माफ़ी मांगने लगा .  भारतीय नारी की यही खासियत है , चाहे वह कम पढ़ी लिखी हो या ज्यादा अपना घर हमेशा बचा लेना चाहती है . रमोला ने भी, रोहन को एक मौका और दिया वरना दूसरे रास्ते तो हमेशा खुले हैं ,उसने सोचा .
रमोला ठीक हो दफ्तर जाने लगी . गाडी की दो पहियों की तरह दोनों अपनी  गृहस्थी की गाडी आगे खींचने लगे .  अपनी पिछली गलतियों से सबक लेते हुए रमोला ने भी तय कर लिया था कि वह घर और दफ्तर दोनों में सामंजस्य बैठा कर चलेगी,  भले ही एकाध तरक्की कम हो  और नौकरी छोड़ने की उसकी धमकी के बाद से रोहन अब घर के कामों में उसका हाथ बंटाने लगा था . इनसब बदलावों के बाद श्रेयांश पहले से ज्यादा खुश रहने लगा था क्यूंकि लंच बॉक्स उसकी मम्मी खुद तैयार करती और हर दिन नए नए डिश भी देती .

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