मेरी क्रिसमस सुरभि प्रभात खबर २३ १२ २०१९
मेरी क्रिसमस हर दिन रात के खाने के बाद रामाशीष जी देर तक टहलते. उसी वक़्त एक छोटा सा बच्चा पास के माॅल से गुब्बारे बेच कर लौटता. कभी खाली डंडा लिए उछलता-कूदता तो कभी न बिके हुए गुब्बारों संग उदास धीमी क़दमों से. उस दिन वे उससे दो गुब्बारे खरीद लेते. ढेर सारी बातें पूछ अपनी लेखन की खुराक जुटाते. घर पहुँचते ही श्रीमती जी का पारा गर्म हो जाता, “कर आये समाज सेवा? चार साल हो गए रिटायर हुए, क्यूँ फिजूलखर्ची करते हो?” “ नाराज मत हो, अब नहीं गुब्बारे खरीदूंगा”, कहते पर अंदर से एक सुकून सा अनुभव करतें. पास ही काम करने वाले लड़के-लड़कियों का एक झुण्ड भी लगभग उसी दौरान लौटता. आपस में बोलते चिल्लाते हँसतें जब वे गुजरते, रामाशीष जी का पारा चढ़ जाता. “बतमीज बेशर्म बेसहूर, जाने कैसी जनरेशन है. कैसे बीच सड़क पर ठिठोली कर रहें सब. कौन सी भाषा बोल रहें उफ़! जाने लड़का कौन और लड़की कौन है ...,” वे भुनभुनाते. कितनी शांत सड़क होती है कॉलोनी की, शोर मचा सारी नीरवता भंग कर देतें हैं हर रात. उन्हें आग्नेय नेत्रों से घूरते - कुड़कुड़ाते लम्बी डग भरते घर की ओर लौट जाते. उस दिन क्रिसमस की रात थी, प