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अहिल्या गृहशोभा september second 2020

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  कहानी – अहिल्या                              by Rita Gupta, Ranchi     आज अरमानों के पूरे होने के दिन थे , स्वप्निल गुलाबी पंखड़ियों सा नरम, खूबसूरत और चमकीला भी ; तुहिना और अंकुर के शादी का दिन . ब्यूटी पार्लर में दुल्हन बनती तुहिना बीते वक़्त को यादों के गलियारों से गुजरती पार करने लगी . दोनों ही इंजीनियरिंग फाइनल ईयर में दोस्त बने थे जब उन दोनों की ही एक ही कंपनी में नौकरी लगी थी कॅम्पस प्लेसमेंट में . फिर बातें होनी शुरू हुई, नए जगह जाना, घर खोजना और एक ही ऑफिस में जॉइन करना . दोनों ने ही ऑफिस के पास ही पीजी खोजा और फिर जीवन की नई पारी शुरू किया .   फिर हर दिन मिलना, ऑफिस की बातें करना बॉस की शिकायत करना . कभी कभी शाम को साथ ही नाश्ता करना या सड़क पर घूमना। धीरे धीरे दोस्ती का स्वरूप बदलने लगा था . अब घर परिवार की पर्सनल बातें भी शेयर होने लगी थी . दोनों ही अपने परिवार में इकलौते बच्चे थे और दोनों के ही पिता नौकरीपेशा . हाँ तुहिना की मम्मी भी जहां एक कॉलेज में पढ़ाती थी वहीं अंकुर की मम्मी गाँव की सीधी सरल महिला थी और वो गाँव में ही रहतीं थी . अंकुर के पिताजी शहर में

बोर्ड परीक्षा के नंबर सिर्फ एक सीढ़ी है मंजिल नहीं

बोर्ड परीक्षा के नंबर सिर्फ एक सीढ़ी है मंजिल नहीं    ये बात काश हर बोर्ड परीक्षार्थी और उसके माता पिता समझ जातें। इस बार तो वैसी ही नम्बरों की बरसात है। विपरीत परिस्थितियों में परीक्षाओं का सम्पन्न होना और फिर उनका मूल्यांकन भी स्थिति अनुसार जैसे तैसे कर मानों कोशिश की गई कि कोई दुखी न हो। बहुत नंबर लाने वाले बच्चों को बहुत बधाई और शुभकामनायें, अभी उनका आत्मविश्वास बढ़ा ही हुआ है सो उन्हे कुछ नहीं कहना है, पर जिन बच्चों को अपेक्षाकृत समाज में ट्रेंड कर रहे मार्क्स से कुछ कम हैं या मनोकूल नहीं हैं उनको कुछ कहना है। माता-पिता कृपया ये देखे कि बच्चे ने कितना नंबर अर्जित किया है ना कि ये देख देखे कि कितने कम आयें हैं। बच्चे की उसी उपलब्धि का जश्न भी जरूर मनाएं। अभी बच्चों के आत्मविश्वास का बने रहना ज्यादा आवश्यक है। अभी कोरोना काल में एक शब्द बहुत तेजी से पसर रहा है “अवसाद से आत्महत्या”। बहुत जरूरी है कि हमारे बच्चे सकारात्मक बने रहें। आसान नहीं होगा उन बच्चों के लिए भी अपने आस-पास ऐरे गैरे हर को नम्बरों के ढेर पर खड़े देखना। बहुत जिम्मेदारी है, न सिर्फ पेरेंट्स की बल्कि अन्य लोगों की
गुरु नानाक देव का विचित्र आशीर्वाद  एक समय आदरणीय गुरु नानक देव यात्रा करते हुए दुष्ट और विध्वंसक विचारधारा रखने वाले लोगों के गाँव पहुंचे। वहां बसे लोगों नें गुरु नानाक देव और उनके शिष्यों का आदर सत्कार नहीं किया, उन्हें कटु वचन बोले और तिरस्कार किया। इतना सब होने के बाद भी, जाते समय ठिठोली लेते हुए, उन्होंने गुरु नानक देव से आशीर्वाद देने को कहा।  जिस पर नानक देव नें मुस्कुराते हुए कहा,  “आबाद रहो” भ्रमण करते हुए, कुछ समय बाद गुरु नानक और उनके शिष्य एक दूसरे गाँव, जा पहुंचे। इस गाँव के लोग नेक, सकारात्मक सोच और  अच्छे विचारों वाले  थे।  उन्होंने बड़े भाव से सभी का स्वागत सत्कार किया और जाते समय गुरु नानक देव से आशीर्वाद देने की प्रार्थना की।  तब गुरु नानक देव नें कहा,  “उजड़ जाओ”  इतना बोल कर वह आगे बढ़ गए, तब उनके शिष्य भी गुरु के पीछे पीछे चलने लगे।  आगे चल कर उनमें से एक शिष्य खुद को रोक नहीं सका और बोला,  "हे देव आप ने बुरे विचारों  वाले उद्दंड मनुष्यों को आबाद रहने का आशीर्वाद दिया और सदाचारी शालीन लोगों को उजड़ जाने का कठोर आशीर्वाद क्यों दिया?&quo

बदलते पापा

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" फोन का बिल देखा है ?", घर में घुसते ही इनकी नज़र लैंडलाइन फोन के बिल पर पड़ चुकी थी।   उफ़! छुपाना भूल गयी। मालूम था ही ये नाराज होंगे इतना लम्बा चौड़ा बिल देख कर। कुछ साल पहले कमोबेश हर घर में फोन के बिल को ले कर महाभारत मचती थी कि किसने किसको कितना फोन किया था। ये पूरा का पूरा बेटी से अत्यधिक बातें करने पर आने वाला बिल था जो हाल ही में   हॉस्टल गयी थी और वहां एडजस्ट नहीं हो पा रही थी सो हर दिन उसका मुझसे रोना गाना देर तक चलता।   " दिन भर उसके साथ फोन पर लगे रहने से तुम उसका नुकसान ही कर रही हो।   उसे वहां घुलने मिलने दो ,  नए दोस्त बनाने दो" , इन्होंने मुझे समझाते हुए कहा था।   बिलकुल दुश्मन ही लगे थे तब ये मुझे कि हम माँ बेटी को बातें भी नहीं करने देते हैं।   " अब मैं आपकी तरह इतना संछिप्त वार्तालाप नहीं कर सकती हूँ वो भी बेटी से" ,   मैंने कह तो दिया    पर फिर ध्यान रखने लगी कि फालतू बातें न हो। धीरे धीरे बेटी नए माहौल में ढलने लगी और कुछ महीनों में रम गयी अपनी पढ़ाई और नए दोस्तों संग। फिर आ गया मोबाइल फोन ,  अब ये तो पल पल हर पल

सामंजस्य

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रमोला के हाथ जल्दीजल्दी काम निबटा रहे थे, पर नजरें रसोई की खिड़की से बाहर गेट की तरफ ही थीं. चाय के घूंट लेते हुए वह सैंडविच टोस्टर में ब्रैड लगाने लगी. ‘‘श्रेयांश जल्दी नहा कर निकलो वरना देर हो जाएगी,’’ उस ने बेटे को आवाज दी. ‘‘मम्मा, मेरे मोजे नहीं मिल रहे.’’ मोजे खोजने के चक्कर में चाय ठंडी हो रही थी. अत: रमोला उस के कमरे की तरफ भागी. मोजे दे कर उस का बस्ता चैक किया और फिर पानी की बोतल भरने लगी. ‘‘चलो बेटा दूध, कौर्नफ्लैक्स जल्दी खत्म करो. यह केला भी खाना है.’’ ‘‘मम्मा, आज लंचबौक्स में क्या दिया है?’’ श्रेयांश के इस सवाल से वह घबराती थी. अत: धीरे से बोली, ‘‘सैंडविच.’’ ‘‘उफ, आप ने कल भी यही दिया था. मैं नहीं ले जाऊंगा. रेहान की मम्मी हर दिन उसे बदलबदल कर चीजें देती हैं लंचबौक्स में,’’ श्रेयांश पैर पटकते हुए बोला. ‘‘मालती दीदी 2 दिनों से नहीं आ रही है. जिस दिन वह आ जाएगी मैं अपने राजा बेटे को रोज नईनई चीजें दिया करूंगी उस से बनवा कर. अब मान जा बेटा. अच्छा ये लो रुपए कैंटीन में मनपसंद का कुछ खा लेना.’’ रेहान की गृहिणी मां से मात खाने से बचने का अब यही एक उपाय श

जीत जाएंगे हम

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जीत जाएंगे हम   एक दिन हम बैठे बैठे चर्चा कर रहें होंगे कि एक बार ऐसा वक्त आया था जब दुनिया थम गई थी। हमारी आने वाली पीढ़ी पूछेंगी कि ऐसा क्यों हुआ था, हम याद करते उन्हें बतलाएंगे कि तब इंसान कुछ ज्यादा ही तेज दौड़ने लगा था। हम याद करते हुए उन्हें बताएंगे कि स्कूल कालेज बंद हो गये थे, दफ्तर दुकानें शटर गिरा चुके थें। हवाई जहाज उड़ना भूल खड़ी थी, रेलगाड़ियों की रफ्तार थम गई थी। शहरों की, देशों की सीमाएं सील कर दी गई थीं, विदेशों से लोग अपने अपनों के लिए सौगातें नहीं बल्कि संक्रमण ला रहे थें। वो पूछेंगे कि ऐसा भला क्या हो गया था, हम उन्हें बताएंगे कि चायना से सस्ती समानों के साथ तब हमने चायना जनित बीमारी भी आयातित कर लिया था। वो जो भविष्य में आने वालें हैं हैरान होंगे कि हम कैसे बच गए, हम उन्हें बताएंगे कि हमने कुछ न कर खुद को और दूसरों को बचाए रखा। सबने खुद को काट लिया दुनिया से ताकि दुनिया कायम रहे। एक दिन आयेगा जब हम आने वाली संतानों से ये सब बताएंगे जो अभी हो रहा है और उन्हें बताने के लिए हम सब को जिंदा रहना होगा। …. तब तक खुद को समेट लो, घर का महत्व समझो और हर वो का

ये लड़ाई है दिए की और तूफान की 23 03 2020

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ये लड़ाई है दिए की और तूफान की एक छोटे से विषाणु ने मनुष्य को उसकी औकात बता दी है। वह मनुष्य जो पूरी धरती को अपनी मिल्कियत मान बाँट रखा था महाद्वीपों , देशों , राज्यों - शहरों में और तो और गोरों और कालों में ,  हिंदू और मुसलमानों में, सिक्खों व ईसाइयों में। इस वायरस ने जता दिया कि सब बस एक इंसान ही हैं और जिनकी ब्रह्माण्ड में हैसियत तुच्छ है।   आज कोरोना वायरस के चपेटे में सब हैं। देशों की सीमाएँ विलीन हो गईं हैं। कहाँ से और कैसे शुरु हुआ इस पर चर्चा ही नहीं हो रही, बस कैसे आक्रमणकारी विषाणु संक्रमण की सेना को रोकी जाए यही फिक्र है। रंग भेद, धार्मिक विभेद के प्रति निष्पक्ष वायरस सीमाओं को नकारते हुए विस्तारित होते जा रहा है। आइए हम सब इंसान मिल कर इस से लोहा लें।

शुभ मंगल ज्यादा सावधान रिव्यु

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पिछले साल इसी वक़्त सिडनी  में बच्चों ने जबरदस्ती हमें Mardi Gras परेड देखने भेजा था।  Mardi Gras , is an annual LGBT pride parade and festival in  Sydney , Australia, attended by hundreds of thousands of people from around Australia and overseas. फिर कल बच्चों ने ही हमें इसी विषय पर बनी फिल्म "शुभ मंगल ज्यादा सावधान" देखने भेजा, नहीं तो मैं नहीं ही जाती। ये विषय हमलोगो के लिए एक तरह से अनजाना और टैबू रहा है सो जानकारी भी कम ही है।  तो बात करे मूवी की, इसका मुख्य आकर्षण इसके कलाकार हैं। इस टीम ने हाल फ़िलहाल में छोटे शहरों के मध्यम वर्ग की बिलकुल आम सी बातों को हलकी फुल्की ढंग से हमारा खूब मनोरंजन कर चुकी है।   यहां किरदार किसी तरह के अपराधबोध से ग्रसित नहीं हैं। फिल्म हास्य से ज्यादा व्यंग्य परोसती है और ये व्यंग्य मुख्य कलाकारों को साथी कलाकारों से मिलने वाली प्रतिक्रिया से उपजता है। पूरी फिल्म में ' समलैंगिता' से जुड़े शब्द, एंजाइम, हॉर्मोन और कानून की चर्चा होती रहती है।  पटकथा थोड़ी और चुस्त होती तो मज़ा आता।  मैं मूढ़ जड़मति अपनी पहले से कंडिशन्ड माइंड को ले उतना एन