किताबों से जुड़ कर देखिए
क्या आप भी दिन भर कचरा चुनते हैं? (एक युवा का पुस्तक प्रेम) किताबों से जुड़ कर देखिए मेरे पिताजी को पुस्तकों का बहुत शौक रहा है, उन्हें ही देख हम दोनों बहनो को भी बचपन से ही पुस्तक प्रेम रहा है। कोर्स के किताबों के इतर एक न एक किताब हमारी चालू रहती थीं, जिन्हें हम दिन भर में जब समय मिलता पढ़ते रहतें, अक्सर स्कूल जाते वक़्त बस में या फिर सारी पढ़ाई कर रात में सोने से पहले। मम्मी भी पापा के रंग में रंग गयी थी और अखबार वाले से सारी पत्रिकाएं मंगवाती थी। हमारे घर में तो ऐसा हाल था कि टीवी चले हफ़्तों बीत जाते। उस वक़्त टीवी पर खूब कार्टून चैनल्स आते थें पर हमें एक भी चरित्र का अतापता नहीं था। यही हम दोनों बहनें पिछड़ जाती अपने दोस्तों से जब कार्टून चरित्रों की बात होती वरना हम कक्षा में प्रथम आने से ले कर स्कूल की हर गतिविधियों में अग्र रहतें थें। आज भी नौकरी-घर की व्यस्तताओं के बीच भी हमारा नावेल चलता रहता है, बैग में या सिरहाने बुकमार्क लगा हमारी किताबें रहतीं हैं। इस बीच समय बहुत तेजी से बदला, सूचना संचार ने तो क्रांतिकारी छलांग लगा ली। हमारे बचपन में जहाँ टी