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Showing posts from March, 2019

किताबों से जुड़ कर देखिए

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   क्या आप भी दिन भर कचरा चुनते हैं? (एक युवा  का पुस्तक प्रेम) किताबों से जुड़ कर देखिए         मेरे पिताजी को पुस्तकों का बहुत शौक रहा है, उन्हें ही देख हम दोनों बहनो को भी बचपन से ही पुस्तक प्रेम रहा है।  कोर्स के  किताबों के इतर एक न एक किताब हमारी चालू रहती थीं, जिन्हें हम दिन भर में जब समय मिलता पढ़ते रहतें, अक्सर स्कूल जाते वक़्त बस में या फिर सारी  पढ़ाई कर रात में सोने से पहले।  मम्मी भी पापा के रंग में रंग गयी थी और अखबार वाले से सारी  पत्रिकाएं मंगवाती थी।  हमारे घर में तो ऐसा हाल था कि टीवी चले हफ़्तों बीत जाते। उस वक़्त टीवी पर खूब कार्टून चैनल्स आते थें पर हमें एक भी चरित्र का अतापता  नहीं था।  यही हम दोनों बहनें पिछड़ जाती अपने दोस्तों से जब कार्टून चरित्रों की बात होती वरना  हम कक्षा में प्रथम आने से ले कर  स्कूल की हर गतिविधियों में अग्र रहतें थें। आज भी नौकरी-घर की व्यस्तताओं के बीच भी हमारा नावेल चलता रहता है, बैग में या सिरहाने बुकमार्क लगा हमारी किताबें रहतीं हैं।      इस बीच समय बहुत तेजी से बदला, सूचना  संचार ने तो क्रांतिकारी छलांग लगा ली।  हमारे बचपन में जहाँ टी

कोयला भई न राख फेमिना जनवरी २०१९

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कोयला भई न राख “दुल्हिन देखो ये तुम्हारे चचिया ससुर हैं, इनके पैर छुओ” “ये सब से बड़ी वाली नन्द हैं, ये मझंली वाली हैं और देखो ये रमेश की दुल्हिन है” “अरे-अरे इसकी पैर क्यूँ छू रही हो? ये तो रिश्ते में तुम्हारी देवरानी हुई न”    सद्यःब्याहता मैं, घूँघट की आड़ लिए निर्देशानुसार पैर छूने का कार्य मशीन बनी किये जा रही थी कि बीच में सबको हंसने का मौका मिल गया. लगभग सभी से मेरा परिचय करा दिया गया.  “चलो हटो सब जरा दुल्हिन को आराम तो करने दो, थकी-हारी होगी”, कहते हुए मुझे एक सजेधजे कमरे में पहुंचा दिया. अगले दिन रसोई छुआने की रस्म थी, वे मुझे अब हलुआ और खीर बनाने में मदद कर रहीं थी. सुबह मंडप में भी वही कुछ रस्में करवा रहीं थीं. अब मुझे टेबल पर परोसने में मदद कर रहीं थीं. “देखो दुल्हिन, अब घूँघट किये रहोगी तो किसी को ठीक से देख नहीं सकोगी और हो सकता है गिर भी जाओ. यहाँ वैसे भी घूँघट का रिवाज नहीं है. घूँघट का रिवाज तो मेरे ससुराल में था, अपनी शादी के बाद मैं तीन दिन रही और किसी का चेहरा नहीं पहचान पाई थी”, “तुम्हारा नाम सुधा है ना? मैं तुम्हें नाम से ही बोलूंगी....”, वे बोलती

" साहित्य के क्षेत्र में स्त्रियों की क्या भूमिका है मनीषा श्री को भेजे हैं

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" साहित्य के क्षेत्र में स्त्रियों की क्या भूमिका है "    साहित्य समाज का दर्पण है, महिलाओं की सामाजिक स्थिति का परिलक्षण साहित्य जगत   में भी स्पष्ट परिलक्षित होता है।     प्राचीन भारत में महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ बराबरी का दर्जा हासिल था।   प्रारम्भिक   वैदिक काल   में महिलाओं को शिक्षा दी जाती थी। ऋग्वेदिक ऋचाएं यह बताती हैं कि महिलाओं की शादी एक परिपक्व उम्र में होती थी और संभवतः उन्हें अपना पति चुनने की भी आजादी थी।   ऋग्वेद और उपनिषद जैसे ग्रंथ कई महिला साध्वियों और संतों के बारे में बताते हैं जिनमें गार्गी और मैत्रेयी के नाम उल्लेखनीय हैं। संत-कवयित्री मीराबाई भक्ति आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण चेहरों में से एक थीं। इस अवधि की कुछ अन्य संत-कवयित्रियों में अक्का महादेवी , रामी जानाबाई और लाल देद शामिल हैं।   बाद में महिलाओं की स्थिति में गिरावट आनी शुरु हो गयी,   मुगल   साम्राज्य के इस्लामी आक्रमण के साथ और इसके बाद ईसाइयत ने महिलाओं की आजादी और अधिकारों को सीमित कर दिया।     तत्कालीन साहित्य में महिला रचनाकारों की अनुपस्थिति स्वतः ही