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मेरा परिचय

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मेरा परिचय लेखक, समीक्षक और कहानीकार  स्वतंत्र लेखन. १०० से ऊपर लघुकथाएं, लेख, स्तम्भ व् कहानियाँ राष्ट्रीय स्तर की लगभग सभी हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. तीन लघुकथा साँझा संग्रह व् एक कहानी सांझा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. नियमित रूप से ब्लॉग लेखन. लेखन के अलावे यूट्यूब पर लोकप्रिय फ़ूड चैनल और ब्लॉग. 

बैंगन नहीं टैंगन

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  बैंगन नहीं टैंगन        मधु को देख इशिता चौंक गई, अभी बमुश्किल छ: महीने हुए होंगे जब वह पहली बार उससे मिली थी . झारखंड के एक छोटी सी जगह गुमला से सिविल सर्विसेज़ की तैयारी करने वह ज़िद्द कर के घर से आई थी . चेहरे से टपकते भोलेपन ने उसका मन मोह लिया था, पढ़ाई के प्रति उसकी लगन और जज़्बे ने सोने पर सुहागे का काम किया था उसके इमेज़ को इशिता के दिल में जगह बनाने में . काश कि ये भोलापन और मासूमियत महानगर की भीड़ में अपना चेहरा न बदल ले . पर उसकी शंका निर्मूल साबित नहीं हुई, मधु की बदली वेशभूषा और नई बोली उसका नया परिचय दे रही थी . इशिता को आज उसके बैच की कक्षा लेनी थी . उन्होंने देखा कि पढ़ाई के मामले में वह अब भी गंभीर ही थी और ये बात उसे सुकून दे रही थी . वर्षों से वह कोचिंग सेंटर में पढ़ा रही थी और उसे दुख होता था उन लड़कियों को देख कर जो अपने अपने गाँव क़स्बे या शहरों से यहाँ आ कर यहाँ की चकाचौंध में खो जाती थीं . उच्च ख़्वाबों की गठरी कुछ ही दिनों के बाद, यहाँ के जीवन को अपनाने के चक्कर में बिखर जाते थे . अपनी हीन भावना से लड़ते हुए, अपने को पिछड़ेपन की तथाकथित गर्त से

अहिल्या गृहशोभा september second 2020

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  कहानी – अहिल्या                              by Rita Gupta, Ranchi     आज अरमानों के पूरे होने के दिन थे , स्वप्निल गुलाबी पंखड़ियों सा नरम, खूबसूरत और चमकीला भी ; तुहिना और अंकुर के शादी का दिन . ब्यूटी पार्लर में दुल्हन बनती तुहिना बीते वक़्त को यादों के गलियारों से गुजरती पार करने लगी . दोनों ही इंजीनियरिंग फाइनल ईयर में दोस्त बने थे जब उन दोनों की ही एक ही कंपनी में नौकरी लगी थी कॅम्पस प्लेसमेंट में . फिर बातें होनी शुरू हुई, नए जगह जाना, घर खोजना और एक ही ऑफिस में जॉइन करना . दोनों ने ही ऑफिस के पास ही पीजी खोजा और फिर जीवन की नई पारी शुरू किया .   फिर हर दिन मिलना, ऑफिस की बातें करना बॉस की शिकायत करना . कभी कभी शाम को साथ ही नाश्ता करना या सड़क पर घूमना। धीरे धीरे दोस्ती का स्वरूप बदलने लगा था . अब घर परिवार की पर्सनल बातें भी शेयर होने लगी थी . दोनों ही अपने परिवार में इकलौते बच्चे थे और दोनों के ही पिता नौकरीपेशा . हाँ तुहिना की मम्मी भी जहां एक कॉलेज में पढ़ाती थी वहीं अंकुर की मम्मी गाँव की सीधी सरल महिला थी और वो गाँव में ही रहतीं थी . अंकुर के पिताजी शहर में

बोर्ड परीक्षा के नंबर सिर्फ एक सीढ़ी है मंजिल नहीं

बोर्ड परीक्षा के नंबर सिर्फ एक सीढ़ी है मंजिल नहीं    ये बात काश हर बोर्ड परीक्षार्थी और उसके माता पिता समझ जातें। इस बार तो वैसी ही नम्बरों की बरसात है। विपरीत परिस्थितियों में परीक्षाओं का सम्पन्न होना और फिर उनका मूल्यांकन भी स्थिति अनुसार जैसे तैसे कर मानों कोशिश की गई कि कोई दुखी न हो। बहुत नंबर लाने वाले बच्चों को बहुत बधाई और शुभकामनायें, अभी उनका आत्मविश्वास बढ़ा ही हुआ है सो उन्हे कुछ नहीं कहना है, पर जिन बच्चों को अपेक्षाकृत समाज में ट्रेंड कर रहे मार्क्स से कुछ कम हैं या मनोकूल नहीं हैं उनको कुछ कहना है। माता-पिता कृपया ये देखे कि बच्चे ने कितना नंबर अर्जित किया है ना कि ये देख देखे कि कितने कम आयें हैं। बच्चे की उसी उपलब्धि का जश्न भी जरूर मनाएं। अभी बच्चों के आत्मविश्वास का बने रहना ज्यादा आवश्यक है। अभी कोरोना काल में एक शब्द बहुत तेजी से पसर रहा है “अवसाद से आत्महत्या”। बहुत जरूरी है कि हमारे बच्चे सकारात्मक बने रहें। आसान नहीं होगा उन बच्चों के लिए भी अपने आस-पास ऐरे गैरे हर को नम्बरों के ढेर पर खड़े देखना। बहुत जिम्मेदारी है, न सिर्फ पेरेंट्स की बल्कि अन्य लोगों की
गुरु नानाक देव का विचित्र आशीर्वाद  एक समय आदरणीय गुरु नानक देव यात्रा करते हुए दुष्ट और विध्वंसक विचारधारा रखने वाले लोगों के गाँव पहुंचे। वहां बसे लोगों नें गुरु नानाक देव और उनके शिष्यों का आदर सत्कार नहीं किया, उन्हें कटु वचन बोले और तिरस्कार किया। इतना सब होने के बाद भी, जाते समय ठिठोली लेते हुए, उन्होंने गुरु नानक देव से आशीर्वाद देने को कहा।  जिस पर नानक देव नें मुस्कुराते हुए कहा,  “आबाद रहो” भ्रमण करते हुए, कुछ समय बाद गुरु नानक और उनके शिष्य एक दूसरे गाँव, जा पहुंचे। इस गाँव के लोग नेक, सकारात्मक सोच और  अच्छे विचारों वाले  थे।  उन्होंने बड़े भाव से सभी का स्वागत सत्कार किया और जाते समय गुरु नानक देव से आशीर्वाद देने की प्रार्थना की।  तब गुरु नानक देव नें कहा,  “उजड़ जाओ”  इतना बोल कर वह आगे बढ़ गए, तब उनके शिष्य भी गुरु के पीछे पीछे चलने लगे।  आगे चल कर उनमें से एक शिष्य खुद को रोक नहीं सका और बोला,  "हे देव आप ने बुरे विचारों  वाले उद्दंड मनुष्यों को आबाद रहने का आशीर्वाद दिया और सदाचारी शालीन लोगों को उजड़ जाने का कठोर आशीर्वाद क्यों दिया?&quo

बदलते पापा

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" फोन का बिल देखा है ?", घर में घुसते ही इनकी नज़र लैंडलाइन फोन के बिल पर पड़ चुकी थी।   उफ़! छुपाना भूल गयी। मालूम था ही ये नाराज होंगे इतना लम्बा चौड़ा बिल देख कर। कुछ साल पहले कमोबेश हर घर में फोन के बिल को ले कर महाभारत मचती थी कि किसने किसको कितना फोन किया था। ये पूरा का पूरा बेटी से अत्यधिक बातें करने पर आने वाला बिल था जो हाल ही में   हॉस्टल गयी थी और वहां एडजस्ट नहीं हो पा रही थी सो हर दिन उसका मुझसे रोना गाना देर तक चलता।   " दिन भर उसके साथ फोन पर लगे रहने से तुम उसका नुकसान ही कर रही हो।   उसे वहां घुलने मिलने दो ,  नए दोस्त बनाने दो" , इन्होंने मुझे समझाते हुए कहा था।   बिलकुल दुश्मन ही लगे थे तब ये मुझे कि हम माँ बेटी को बातें भी नहीं करने देते हैं।   " अब मैं आपकी तरह इतना संछिप्त वार्तालाप नहीं कर सकती हूँ वो भी बेटी से" ,   मैंने कह तो दिया    पर फिर ध्यान रखने लगी कि फालतू बातें न हो। धीरे धीरे बेटी नए माहौल में ढलने लगी और कुछ महीनों में रम गयी अपनी पढ़ाई और नए दोस्तों संग। फिर आ गया मोबाइल फोन ,  अब ये तो पल पल हर पल

सामंजस्य

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रमोला के हाथ जल्दीजल्दी काम निबटा रहे थे, पर नजरें रसोई की खिड़की से बाहर गेट की तरफ ही थीं. चाय के घूंट लेते हुए वह सैंडविच टोस्टर में ब्रैड लगाने लगी. ‘‘श्रेयांश जल्दी नहा कर निकलो वरना देर हो जाएगी,’’ उस ने बेटे को आवाज दी. ‘‘मम्मा, मेरे मोजे नहीं मिल रहे.’’ मोजे खोजने के चक्कर में चाय ठंडी हो रही थी. अत: रमोला उस के कमरे की तरफ भागी. मोजे दे कर उस का बस्ता चैक किया और फिर पानी की बोतल भरने लगी. ‘‘चलो बेटा दूध, कौर्नफ्लैक्स जल्दी खत्म करो. यह केला भी खाना है.’’ ‘‘मम्मा, आज लंचबौक्स में क्या दिया है?’’ श्रेयांश के इस सवाल से वह घबराती थी. अत: धीरे से बोली, ‘‘सैंडविच.’’ ‘‘उफ, आप ने कल भी यही दिया था. मैं नहीं ले जाऊंगा. रेहान की मम्मी हर दिन उसे बदलबदल कर चीजें देती हैं लंचबौक्स में,’’ श्रेयांश पैर पटकते हुए बोला. ‘‘मालती दीदी 2 दिनों से नहीं आ रही है. जिस दिन वह आ जाएगी मैं अपने राजा बेटे को रोज नईनई चीजें दिया करूंगी उस से बनवा कर. अब मान जा बेटा. अच्छा ये लो रुपए कैंटीन में मनपसंद का कुछ खा लेना.’’ रेहान की गृहिणी मां से मात खाने से बचने का अब यही एक उपाय श