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Showing posts from February, 2020

शुभ मंगल ज्यादा सावधान रिव्यु

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पिछले साल इसी वक़्त सिडनी  में बच्चों ने जबरदस्ती हमें Mardi Gras परेड देखने भेजा था।  Mardi Gras , is an annual LGBT pride parade and festival in  Sydney , Australia, attended by hundreds of thousands of people from around Australia and overseas. फिर कल बच्चों ने ही हमें इसी विषय पर बनी फिल्म "शुभ मंगल ज्यादा सावधान" देखने भेजा, नहीं तो मैं नहीं ही जाती। ये विषय हमलोगो के लिए एक तरह से अनजाना और टैबू रहा है सो जानकारी भी कम ही है।  तो बात करे मूवी की, इसका मुख्य आकर्षण इसके कलाकार हैं। इस टीम ने हाल फ़िलहाल में छोटे शहरों के मध्यम वर्ग की बिलकुल आम सी बातों को हलकी फुल्की ढंग से हमारा खूब मनोरंजन कर चुकी है।   यहां किरदार किसी तरह के अपराधबोध से ग्रसित नहीं हैं। फिल्म हास्य से ज्यादा व्यंग्य परोसती है और ये व्यंग्य मुख्य कलाकारों को साथी कलाकारों से मिलने वाली प्रतिक्रिया से उपजता है। पूरी फिल्म में ' समलैंगिता' से जुड़े शब्द, एंजाइम, हॉर्मोन और कानून की चर्चा होती रहती है।  पटकथा थोड़ी और चुस्त होती तो मज़ा आता।  मैं मूढ़ जड़मति अपनी पहले से कंडिशन्ड माइंड को ले उतना एन

कहाँ तक ये मन को अंधेरे छलेंगे उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे

कहाँ तक ये मन को अंधेरे छलेंगे उदासी भरे दिन कहीं तो ढलेंगे कभी सुख कभी दुख, यही ज़िंदगी हैं ये पतझड़ का मौसम घड़ी दो घड़ी हैं (२) नये फूल कल फिर डगर में खिलेंगे उदासी भरे दिन कहीं तो ढलेंगे भले तेज कितना, हवा का हो झोंका मगर अपने मन में तू रख ये भरोसा (२) जो बिछड़े सफ़र में तुझे फिर मिलेंगे उदासी भरे दिन कहीं तो ढलेंगे कहे कोई कुछ भी, मगर सच यही है लहर प्यार की जो कहीं उठ रही है (२) उसे एक दिन तो किनारे मिलेंगे उदासी भरे दिन कहीं तो ढलेंगे

"साढ़े दस हज़ार का फोन" समीक्षा

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कहानी "साढ़े दस हज़ार का फोन"  जो प्रकाशित हुई है हंस पत्रिका के नए अंक में। कहानी है निशा और मीरा दो औरतों की जो प्रतिनिधित्व कर रहीं हैं अपना अपना वर्ग। वंदना जी ने बाखूबी इन दोनों वर्गों की सोच और जीवन दर्शन को अपनी कलम से उभारा है बिना किसी शब्द आडंबर के। कहानी की सरलता सहजता और संवाद निर्झरणी की तरह समभाव बहती रही और दिल को छूती एक खूबसूरत अंत तक मानस  उदधि से जा मिली।  बधाई हो वंदना जी इसी तरह मनभावन कहानियाँ गढ़ती रहें और मानव मन की सीवन उधेड़ उसकी छिपी परतें प्रदर्शित करती रहें, शुभ कामनाएं। 

ब्रेकअप तेरे कितने रूप मुक्त february प्रथम

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ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग......... फोन की घंटी बजते ही रसिका की मम्मी उपमा ने जल्दी से उठाया, जाने कितनी देर से उनकी सांसे अटकी हुई थी।  सारे देवी देवताओं को उन्होंने इस दरम्यान याद कर लिया था कि आज बात बन जाये। दरअसल रसिका, जो बंगलुरु  में नौकरी करती है , आज एक लड़के से मिलने एक रेस्टोरेंट में गयी थी।  सजातीय इस लड़के के बारे में उसके पापा मम्मी को ऑनलाइन मैट्रिमोनियल साइट से पता चला था। "हेलो रसिका! मिल आयी उदित से ? कैसा लगा?" मम्मी अपनी उत्कंठा छुपाये नहीं छुपा पा रही थी। एक चुप्पी के बाद रसिका ने उखड़े उखड़े स्वर में कहा, "नहीं मम्मी बिलकुल भी इम्प्रेसिव व्यक्तित्व नहीं है। अब ठीक है कि वह टॉप कॉलेज से पढ़ा हुआ है पर थोड़ा तो अच्छा दिखना ही चाहिए। केवल डिग्री से क्या होना है,  मुझे तो बहुत अनस्मार्ट लगा, मैं नहीं करने वाली इससे शादी। तुम अब दूसरा खोजो" यह कहते हुए रसिका ने फोन काट दिया। उसकी  मम्मी देर सोचती रह गयी, अब तक कुल सात लड़कों से रसिका मिल चुकी थी।  लड़के क्या कहते उसके पहले ही ये कोई नुक्स निकाल मम्मी को मना कर देती।  अब पिछली बार इसे शिकायत थी कि लड़क

बलात्कार ...... कैसे जन्म लेती है ये हैवानियत

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बलात्कार ...... बलात्कार- समस्या और समाधान      हाल के समय में ये शब्द "बलात्कार" शायद सबसे ज्यादा ख़बरों में रहा, यही वो एक शब्द है जो लड़कियों और उनके घरवालों के लिए सबसे ज्यादा डरावना भी है। मूल शब्द बलात्, जिसका मतलब जबरदस्ती होता है से बना ये शब्द बृहद रूप में ' किसी भी शख़्स की मर्ज़ी के बग़ैर उसके साथ  जिस्मानी रिश्ता  कायम करना बलात्कार होता है।' यह एक  जुर्म  है। अपने शहर रांची में घटी निर्भया काण्ड के मुख्य आरोपी राहुल राज को उम्र कैद की सजा सुनाई गयी है। सजा सुनाने के बाद पर अख़बारों में छपे उसके चित्र में दिख रही मुस्कराहट और सुकून ने ये सोचने को विवश कर दिया कि आखिर क्यों करते हैं बलात्कार।  पितृसत्तात्मक सोच इसकी जड़ है जो महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझता है। उन्हें सिर्फ उपभोग की वस्तु ही समझता रहा है। अपनी इन्द्रियों को वश में रखने में असफ़ल ये बलात्कारी बेख़ौफ़ हो कुकर्म कर जातें हैं।  बलात्कार सहित सारी स्त्री विरुद्ध हिंसाओं की जड़ पितृसत्तात्मक और पुरुषवादी सोच है। इस तथ्य से शायद ही कोई असहमत होगा। जितना यह सोच पोषित होगी उतना ही स्त्री के विरु