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"लोग क्या कहेंगे" publish गृह शोभा अगस्त द्वितीय में

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लेख- खुशखबरी कब सुना रही हो    अपनी पढाई पूरी कर सिल्की को नौकरी शुरू किये बमुश्किल सात-आठ महीने ही हुए होंगे कि अगल बगल और रिश्तेदारों ने मानों जीना हराम कर दिया उसका. घर परिवार या पड़ोस में कहीं कोई शादी ब्याह या कोई भी गेट टूगेदर हो, उसे देखते ही मानों सवालों की बाढ़ आ जाती, “अरे! वाह सिल्की तुम तो बड़ी - बड़ी दिखने लगी हो” “पढाई पूरी हो गयी? कहाँ जॉब कर रही हो? कितने का पैकेज मिलता है? “और बताओ क्या चल रहा है आजकल ...”, इस सवाल से सिल्की बहुत घबराती थी क्यूँ कि अगला सवाल उसे मालूम होता, “तब शादी कब कर रही हो? क्या किसी को खोज रखा है, तो बता तो हमें?......”, खीसें निपोरती कोई भी आंटी, बुआ या मौसी की आत्मीयता प्रदर्शित करते इस प्रश्न से उसे बड़ी कोफ़्त होती. फलत: उसने धीरे धीरे इन पारिवारिक समारोहों से खुद को काट लिया. “अरे जिसकी शादी/जन्मदिन/मुंडन में आये हो उसकी बातें करो, प्लेट भर खाओ. मेरी जोड़ी क्यूँ खोजने लगते हो”, सिल्की भुनभुनाती. वही हाल उसकी मम्मी का था, जब भी फ्लैट की महिलाओं की मण्डली जमती उसे देखतें सब मानों मैरिज ब्यूरो खोल लेतीं, “मेरा बेटा सिल्की से तीन

हमसाया दैनिक भास्कर में भेज रहें published on 02/08/2017 in story mirror author of the week

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हमसाया कुछ ही दिन हुए थे उस नए शहर में मुझे नौकरी ज्वाइन किये. हर दिन लगभग पांच-छः बजे मैं अपने ठिकाने यानि वर्किंग गर्ल्स हॉस्टल पहुँच जाती थी. उस दिन कुछ जरुरी काम निपटाते मुझे देर हो गयी. माँ की सीख याद आई कि रात के वक़्त रिज़र्व ऑटो में अकेले न जाना, सो शेयर्ड ऑटो ले मैं हॉस्टल की तरफ चल पड़ी. वह मुझे सड़क पर उतार आगे बढ़ गया, रात घिर आई थी, कोई नौ -साढ़े नौ होने को था. पक्की सड़क से हमारा हॉस्टल कोई आधा किलोमीटर अंदर गली में था.   अचानक गली के सूनेपन का दैत्य अपने पंजे गड़ाने लगा मानस पर. इक्के दुक्के लैंप पोस्ट नज़र आ रहें थें पर उनकी रौशनी मानो बीरबल की खिचड़ी ही पका रहीं थी. सामने पान वाले की गुमटी पर अलबत्ता कुछ रौशनी जरुर थी पर वहां कुछ लड़कों की मौजूदगी सिहरा रही थी जो जोर जोर से हंसते हुए माहौल को डरावना ही बना रहे थें. मैं सड़क पर गुमटी के विपरीत दिशा से नज़रें झुका जल्दी जल्दी पार होने लगी, “काश मैं अदृश्य हो जाऊं, कोई मुझे न देख पाए”,    कुछ ऐसे ही ख्याल मुझे आ रहें थें कि उनके समवेत ठहाकों ने मेरे होश उड़ा दिए. अचानक मैं मुड़ी तो देखा कि एक साया बिलकुल मेरे पीछे ही है. लम्बें