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दुल्हन वही जो पिया मन भावे सरिता नवंबर सेकंड

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            दुल्हन वही जो पिया मन भावे         कैफ़ेटेरिया में बैठा सत्यम अब उकताने लगा था. उसकी चौथी कप कॉफ़ी चल रही थी और सुहानी का कोई अता  पता नहीं था. सुहानी की याद आते ही उसकी अधरों पर फिर  से मुस्कान तैरने लगी. दिल - दिमाग में शहनाइयां बजने लगती थी, उसके स्मरण मात्र से ही.  ब-मुश्किल चार बार उससे अकेले में व् एक बार घर वालों के साथ मिला है. पर यह पहली नज़र का प्यार था, उसने सुहानी को जब पहली दफा देखा था तभी उसके दिल से आवाज आने लगी थी, "हां यही है , यही है, यही तो है...... ."        कोई सोलह वर्ष की उम्र में वह पहली बार घर से बाहर हॉस्टल में रहने गया था, प्लस टू, इंजीनियरिंग फिर एम् बी ए और अब नौकरी. मजाल है जो उसने किसी भी सहपाठी या महिला-सहकर्मी की तरफ आँख भी उठा के देखा हो. बचपन से ही घर में मम्मी-पापा ने कुछ ऐसी घुट्टी पिलाई थी कि वह ऐसा सोच भी नहीं सकता था कि वह घर वालो की पसंद की लड़की के सिवा किसी से शादी या दोस्ती भी कर ले. वर्षों उसने, उम्र के नाज़ुक दौर से गुजरने के वक़्त भी अपनी दिल की वल्गा को कसे रखा. अपनी पसंद की पढाई, कॉलेज और नौकरी करने के ही अधिकार को ह