बैंगन नहीं टैंगन
बैंगन नहीं टैंगन मधु को देख इशिता चौंक गई, अभी बमुश्किल छ: महीने हुए होंगे जब वह पहली बार उससे मिली थी . झारखंड के एक छोटी सी जगह गुमला से सिविल सर्विसेज़ की तैयारी करने वह ज़िद्द कर के घर से आई थी . चेहरे से टपकते भोलेपन ने उसका मन मोह लिया था, पढ़ाई के प्रति उसकी लगन और जज़्बे ने सोने पर सुहागे का काम किया था उसके इमेज़ को इशिता के दिल में जगह बनाने में . काश कि ये भोलापन और मासूमियत महानगर की भीड़ में अपना चेहरा न बदल ले . पर उसकी शंका निर्मूल साबित नहीं हुई, मधु की बदली वेशभूषा और नई बोली उसका नया परिचय दे रही थी . इशिता को आज उसके बैच की कक्षा लेनी थी . उन्होंने देखा कि पढ़ाई के मामले में वह अब भी गंभीर ही थी और ये बात उसे सुकून दे रही थी . वर्षों से वह कोचिंग सेंटर में पढ़ा रही थी और उसे दुख होता था उन लड़कियों को देख कर जो अपने अपने गाँव क़स्बे या शहरों से यहाँ आ कर यहाँ की चकाचौंध में खो जाती थीं . उच्च ख़्वाबों की गठरी कुछ ही दिनों के बाद, यहाँ के जीवन को अपनाने के चक्कर में बिखर जाते थे . अपनी हीन भावना से लड़ते हुए, अपने को पिछड़ेपन की तथाकथित गर्त से