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मेरा परिचय

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मेरा परिचय लेखक, समीक्षक और कहानीकार  स्वतंत्र लेखन. १०० से ऊपर लघुकथाएं, लेख, स्तम्भ व् कहानियाँ राष्ट्रीय स्तर की लगभग सभी हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. तीन लघुकथा साँझा संग्रह व् एक कहानी सांझा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. नियमित रूप से ब्लॉग लेखन. लेखन के अलावे यूट्यूब पर लोकप्रिय फ़ूड चैनल और ब्लॉग. 

मातृ दिवस की प्रासंगिगता पब्लिश हुई इंडिया टुडे में

मातृ दिवस की प्रासंगिगता  विदेशों से होती हुई एक बहुत सुंदर परंपरा हमारे देश की संस्कृति से घुलमिल कर एक बेहतरीन रूप में मनाई जाने लगी है, ‘मदर्स-डे’ या देसी बोली में मातृ दिवस. छोटे-छोटे बच्चे भी अपनी माँ के गले लग ‘हैप्पी मदर्स-डे’ बोलते हैं. नौजवान और कमाने वाली पीढ़ी भी दिवस विशेष की ख़ुशी किसी न किसी रूप में प्रकट करने का प्रयास करती है. कोई माँ को उपहार देता है तो कोई कार्ड और फूल. और तो और वो बुढ़ाती हुई पीढ़ी जिन्होंने अपने बचपन में इस स्पेशल डे का जिक्र भी नहीं सुना था वो भी पीछे नहीं रहती है इस दिन को एक त्यौहार का रंग देने में. माँ को विभिन्न तरीके से धन्यवाद बोलते, जाने कितने सारे विडियो अभी दिखने लगते हैं. सोशल मिडिया पट जाती है लव यू माँ के पोस्ट्स से. अच्छा लगता है, एक नारी को उसके मातृत्व को सम्मान देना वह भी उसके बच्चों के द्वारा.   मदर्स डे ग्राफटन वेस्ट वर्जिनिया में एना जॉर्विस द्वारा समस्त माताओं और उनके गौरवमयी मातृत्व के लिए तथा विशेष रूप से पारिवारिक और उनके परस्पर संबंधों को सम्मान देने के लिए १९०८ में आरंभ किया गया था. १९०५ में अपनी माँ की मृत्यु के पश्चात्

तो क्या मुझे डरना चाहिए ? पब्लिश हुआ इडिया टुडे के ऑनलाइन प्लेटफार्म आई चौक और हिंदुस्तान के एडिटोरियल पेज पर

तो क्या मुझे डरना चाहिए ? दिल्ली के ई-रिक्शा चालक, तीस वर्षीय रविन्द्र को सिर्फ इस लिए पीट पीट कर मारा गया क्यूंकि उसने कुछ लोगो को सड़क किनारे पेशाब करने से रोका और तो और उन्हें पास के सुलभ शौचालय जाने को कहा.   मेरी तो आदत है कि मैं टोक देती हूँ लोगो को जब वे ट्रेन, बस, रेलवे स्टेशन, पार्क या कोई पर्यटन स्थल पर अपनी गंदगी छोड़/फ़ेंक कर जाने लगते हैं. पुल से पार करते वक़्त शीशा नीचे रखती हूँ कि कोई नदी में कुछ विसर्जित करता दिख जाये तो मना कर दूं. सुंदर प्राकृतिक मौसमी झरने के पास एक बड़ा सा ग्रुप पिकनिक मना रहा था तो मैंने पास जा कर सबसे बुजुर्ग महिला से पूछा था कि वे लोग अपने प्लेट, गिलास और जूठन को यहाँ छोड़ तो नहीं जायेंगे. उस दिन ट्रेन के वातानुकूलित डिब्बे में मेरे सामने बैठे जनाब देश को गाली देते देते नमकीन भुजिया का रैपर और चाय का गिलास सीट के नीचे सरकाने लगे तो मैंने कहा कि मुझे दे दीजिये मैं डस्टबीन में डाल देतीं हूँ. तो जनाब ने झेंप मिटाते कहा कि अभी कुछ और खाना है तब एक साथ फ़ेंक दूंगा. टहलते वक़्त उस व्यक्ति को मैं खड़े हो कर घूरने लगी थी जो सड़क किनारे अपनी जिप खोल बेशर्मी