तो क्या मुझे डरना चाहिए ? दिल्ली के ई-रिक्शा चालक, तीस वर्षीय रविन्द्र को सिर्फ इस लिए पीट पीट कर मारा गया क्यूंकि उसने कुछ लोगो को सड़क किनारे पेशाब करने से रोका और तो और उन्हें पास के सुलभ शौचालय जाने को कहा. मेरी तो आदत है कि मैं टोक देती हूँ लोगो को जब वे ट्रेन, बस, रेलवे स्टेशन, पार्क या कोई पर्यटन स्थल पर अपनी गंदगी छोड़/फ़ेंक कर जाने लगते हैं. पुल से पार करते वक़्त शीशा नीचे रखती हूँ कि कोई नदी में कुछ विसर्जित करता दिख जाये तो मना कर दूं. सुंदर प्राकृतिक मौसमी झरने के पास एक बड़ा सा ग्रुप पिकनिक मना रहा था तो मैंने पास जा कर सबसे बुजुर्ग महिला से पूछा था कि वे लोग अपने प्लेट, गिलास और जूठन को यहाँ छोड़ तो नहीं जायेंगे. उस दिन ट्रेन के वातानुकूलित डिब्बे में मेरे सामने बैठे जनाब देश को गाली देते देते नमकीन भुजिया का रैपर और चाय का गिलास सीट के नीचे सरकाने लगे तो मैंने कहा कि मुझे दे दीजिये मैं डस्टबीन में डाल देतीं हूँ. तो जनाब ने झेंप मिटाते कहा कि अभी कुछ और खाना है तब एक साथ फ़ेंक दूंगा. टहलते वक़्त उस व्यक्ति को मैं खड़े हो कर घूरने लगी थी जो सड़क किनारे अपनी जिप खोल बेशर्मी