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ये कौन आ रहा - कविता सरिता अप्रैल प्रथम २०१७

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सुनो बेटा गृहशोभा द्वितीय में छपी २०१७

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सुनो बेटा "माँ मुझे अपनी सहेली निशा के घर जाना है ,उसने बहुत अच्छे से नोट लिखा है आज क्लास में .कल टेस्ट है ,एक बार उस के घर जा कर पढ़ आती हूँ .चौक के पास ही तो रहती है स्कूटी से तुरंत ही जा कर आ जाउंगी ", राशि ने अपनी माँ सुधा से पूछा . "ये कोई वक़्त है लड़कियों के घर से बाहर निकलने की ? देख रही हूँ सुधा तूने इसे कुछ ज्यादा ही छूट दे रखा है . कुछ ऊंच-नीच हो जाएगी तो सर धुनते रहना जीवन भर ", माँ तो बाद में बोलती ,राशि की दादी ही पहले बोल उठी . "तुम्हे क्लास में ही उससे नोट ले लेनी चाहिए थी ,आखिर रात होने की तुमने इन्तजार ही क्यूँ किया ?",पापा ने घर में घुसते ही प्रश्न उछाल दिया . "बेटा उस टॉपिक को छोड ,तुम बाकी पढ़  लो, अब सही बात है ना रात नौ बजे तुम्हारा बाहर जाना उचित नहीं ", माँ ने भी समझाईश वाले टोन में कहा . मन मसोस राशि ,बैठ कर पढने लगी .कोई एक घंटे के बाद उसका भाई ,अपने कमरे से निकला और "माँ शाम से बाहर नहीं निकला हूँ एक चक्कर लगा कर आता हूँ " का जुमला उछाल ,अपनी बाइक ले बाहर चला गया .कहीं से कोई आवाज नहीं आई .किसी ने ना कुछ प

बाबा ब्लैक शीप vanita अप्रैल २०१७ published

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कहानी  -                                       द्वारा RITA GUPTA  हर दिन सुबह चाय का कप हाथ में ले मैं अखबार हमेशा खेल समाचार वाले पन्ने से शुरू करता हूँ. कारण वही डर कि न जाने सुबह सुबह किस बुरी नकारात्मकता से मुलाकात हो जाये. आखिर में पहले पन्ने पर भी आना तो पड़ता ही है और दुनिया भर की बदसूरती और विकृतियों से मुलाकात करता हूँ. आज भी इससे पहले कि मैं पहले पन्ने पर जाऊं, खेल समाचार पढ़ते हुए मैं अंतिम पन्ने पर नज़र फिराने लगा कि एक समाचार पर दिल बैठ गया. खबर थी,  “ दूरदर्शन के रिटायर्ड निदेशक का शव ठेके पर मिला, बेटे ने अमेरिका में फोन तक नहीं उठाया”.  फोटो देख मन सहम गया, शायद मैं इन्हें अच्छे से जानता था. नाम देखा, श्री रामेंद्र सरीन. मेरा मन कसैला सा हो गया. अब मन को और कडु़वा करने प्रथम पृष्ठ तक जाने की हिम्मत ही नहीं हुई.     वर्षों पहले बरेली के वो दिन याद आ गएँ. जब सरीन अंकल बरेली दूरदर्शन में एक उच्च पदस्थ अधिकारी हुआ करतें थें और हमारे पड़ोसी भी. इतने उच्च पद पर थें कि उनके घर में तीन-चार नौकर काम करतें थें और बड़ी सी चमचमाती गाड़ी दरवाजे पर खड़ी रहती थी. उनका बेटा, समर्थ