शुरू से शुरू करते हैं दैनिक भास्कर २७/१२/2018
शुरू से शुरू करतें हैं- "अनु तुमने उससे बात की?" आज मम्मी ने फिर अनुश्री से पूछा. पिछले कुछ दिनों से ये नया सिलसिला शुरू हुआ था। मम्मी उसे याद दिलाती कि अनुश्री को आकर्ष से पूछना चाहिए। बदले में अनु फटी फटी दृगों से मम्मी को तकती रह जाती, फिर उसकी दृष्टि स्वत: ही शून्य में विलीन हो जाती और भावनाशून्य हो मृतप्राय बोझिल देह देर तक आत्मा पर हो रहें दंश को झेलती रहती। आत्मा तो उसकी जाने कब से जख्मी लहुलुहान ही थी. पहले रो कर, आंसू बहा कर तपती मरुभूमि से मन को सिंचित कर फिर से हरा भरा करने का अथक प्रयास करती थी. पर अब जाने मन कैसा उजाड़ मरुस्थल हो चुका था कि अश्रु सैलाब एक कैक्टस उगाने में भी असफल हो रहे थें . कितना भारी लगा था उसे अपनी भावी सास के द्वारा अंजुरी में दिया गया अक्षत और शगुन. इतना वजन कि उसकी आत्मा उसी वक़्त दब गयी-कुचल गयी. कितनी चुभन थी उस महावर में जो उसके पैरों में रचाई गयी थी. जख्मी रक्त टपकते ह्रदय से उसने ससुराल में प्रवेश लिया था. क्या वो आलता रचे पैरों के छाप थे जो वह नयी दुल्हन के रूप में छम छम कर बनाती जा रही थी, ऐसा सबको लगा होगा पर उस