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#METOO

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मैं भी ’तब क्यूँ नहीं.. अब क्यों! आरोप लगाना और उसे साबित करना दो अलग बात हैं ….. सारी महिलाएँ झूठी हैं , सिर्फ नाम कमाने के लिए बोल रही हैं ….. सिर्फ मनोरंजन जगत की ही महिलाएं क्यों …… आज हिम्मत समेटी है , ज़िंदगी झेलते हुए थोड़े हौसले इकट्ठे कर लिए हैं तो बोल रही हूँ .....   हाँ तब नहीं थी हिम्मत! घबरा गई थी नयी नयी उड़ान भरी थी … करियर के पहले पायदान पर पैर धरे थे .... डर गई, सिमट गई थी …..   …. अभी सोशल मीडिया में गर्मा गर्म यही बहस चलते दिखाई दे रहें हैं।     इन दिनों दो शब्दों की काफी चर्चा है। यह दो शब्द अंग्रेजी के हैं और इनकी वजह से एक आंदोलन खड़ा हो गया है। हम बात कर रहे हैं MeToo की। हिंदी   में   इसके मायने हुए ‘मैं भी’। दरअसल , यह यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिलाओं का आंदोलन है। #MeToo के जरिए वो सोशल मीडिया पर अपने साथ हुई बदसलूकी या यौन उत्पीड़न का इस हैशटैग के साथ खुलासा करती हैं ।   करीब 12 साल पहले अमेरिका की सामाजिक कार्यकर्ता टेरेना बर्क ने खुद के साथ हुए यौन शोषण का जिक्र करते हुए सबसे पहले इन शब्दों का इस्तेमाल किया।