#METOO







मैं भी

’तब क्यूँ नहीं.. अब क्यों!
आरोप लगाना और उसे साबित करना दो अलग बात हैं…..
सारी महिलाएँ झूठी हैं, सिर्फ नाम कमाने के लिए बोल रही हैं…..
सिर्फ मनोरंजन जगत की ही महिलाएं क्यों……
आज हिम्मत समेटी है, ज़िंदगी झेलते हुए थोड़े हौसले इकट्ठे कर लिए हैं तो बोल रही हूँ.....
 हाँ तब नहीं थी हिम्मत! घबरा गई थी नयी नयी उड़ान भरी थी
करियर के पहले पायदान पर पैर धरे थे....
डर गई, सिमट गई थी…..


  ….अभी सोशल मीडिया में गर्मा गर्म यही बहस चलते दिखाई दे रहें हैं।
    इन दिनों दो शब्दों की काफी चर्चा है। यह दो शब्द अंग्रेजी के हैं और इनकी वजह से एक आंदोलन खड़ा हो गया है। हम बात कर रहे हैं MeToo की। हिंदी में इसके मायने हुए ‘मैं भी’। दरअसल, यह यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिलाओं का आंदोलन है। #MeToo के जरिए वो सोशल मीडिया पर अपने साथ हुई बदसलूकी या यौन उत्पीड़न का इस हैशटैग के साथ खुलासा करती हैं
 करीब 12 साल पहले अमेरिका की सामाजिक कार्यकर्ता टेरेना बर्क ने खुद के साथ हुए यौन शोषण का जिक्र करते हुए सबसे पहले इन शब्दों का इस्तेमाल किया। बहरहाल, बर्क की पहल का असर 2017 में हुआ। हॉलीवुड प्रोड्यूसर हार्वे वाइंस्टीन पर 50 से ज्यादा महिलाओं ने 30 साल के दौरान यौन शोषण के आरोप लगाए। न्यूयॉर्क टाइम्स और न्यूयॉर्कर जैसे बड़े अखबारों ने इस पर रिपोर्ट प्रकाशित कीं। हॉलीवुड एक्ट्रेस एलिसा मिलानो ने भी आरोप लगाए। इसी दौरान सोशल मीडिया पर किसी ने उन्हें टैग करते हुए लिखा कि वो #MeToo के जरिए अपनी बात रखे। मिलानो ने ऐसा ही किया, 32 हजार से ज्यादा महिलाओं ने इस हैशटैग का उपयोग करते हुए अपनी आपबीती साझा की। अब तो से संख्या लाखों लाख में पहुँच चुकी है।
   #Metoo एक मुहिम है जिसका मकसद किसी पीड़िता को यह एहसास दिलाने का है कि वह अकेली नहीं है बल्कि और भी हैं जो इन जहालत से गुजर चुकी हैं। अकसर जानपहचान वाले, सहकर्मी या रिश्तेदार ही कुछ ऐसा कह/कर गुजरते हैं कि लड़की/महिला हतप्रभ या विभिन्न कारणों से भयभीत हो उस वक्त प्रतिकार नहीं कर पाती है। कम उम्र की लड़कियों को ये कैंपेन हिम्मत देती है कि वे त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त करें बिना खुद को जिम्मेदार समझे।
आज के वक्त ये हैशटैग रंग, देश, सीमाओं को परे ढकेलती 85 देशों में विभिन्न सोशल मीडिया के माध्यम ट्रेंड कर रहा है। यही इस मुहिम की सफलता है जो अब एक आंदोलन का रूप ले चुका है। जो मामले की गंभीरता, भयावकता और व्यापकता की ओर इंगित करती है। समुद्र में तैरते किसी ग्लेशियर की भांति जिसका सिर्फ सिरा ही बाहर दिख रहा है और अधिकांश भाग पानी में छुपा डूबा है।
  एक से एक पुराने गड़े मुर्दें भी उखाड़े जा रहे हैं। दस पन्द्रह साल पहले की घटनाओं को महिलाएं व्यक्त कर रहीं हैं। कई नामवर स्थापित चेहरों के आब उतरने लगे हैं। एक दूसरे को देख सुन महिलाएं बेबाकी से सामने आने लगी हैं। इसकी सफलता तभी साबित होगी जब मर्द वास्तविकता में महिलाओं के प्रति अपने व्यवहार में सचेत हों।
 इस मुहिम से एक बात और साफ हो रही है कि सिर्फ विकासशील देश जैसे भारत की ही बल्कि अमेरिका इंगलैंड जैसे विकसित समाजों में भी औरतों को भी कभी ना कभी यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
#Metoo मुहिम के खिलाफ भी उठी आवाज़
  ये मानी हुई बात है कि जब किसी पर बिना साक्ष्य आरोप लगाया जाएगा तो वो प्रतिकार तो करेगा ही। भूतकाल के बोतल से निकले ये काले बदनुमा जिन्न जाने भविष्य और वर्तमान में क्या गुल खिलाएँ। सो बिलकुल इसी मानसिकता के तहत विरोध स्वर भी मुखरित हो रहें हैं।
आज ही अखबारों में पढ़ा कि अमेरिका की प्रथम महिला मिलानिया ट्रंप ने कहा है कि यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिलाएं ठोस सबूत भी दें।
अमेरिका में तो एक महिला ने यहाँ तक कह डाला कि मैं अपने बेटे पति या भाई को सलाह दूंगी कि वे हर वक्त  cctv से खुद को सुरक्षित रखें ताकि आसपास की कोई औरत बेजा आरोप न लगा सके। बात  हास्यास्पद है पर ये भी तो सच है कि छेड़खानी, गलत स्पर्श, भद्दे अश्लील संवाद करने वाले अब बेखौफ ये हरकतें नहीं करेगें।
#MeToo के जवाब में #HimToo की शुरुआत भी हो चुकी है। परन्तु इस के अंतर्गत कहने को ज्यादातर मानसिक आघात हैं जो आघातों के पैमाने मे शारीरिक आघातों से कम घातक है।
#MeToo कैंपेन की पहुँच
नगण्य हैं इसकी पहुँच। डर है कि अच्छे उद्देश्य से शुरू की गई ये मुहिम पढ़ीलिखी कंप्यूटर मोबाइल चलाने वालियों तक ही सीमित न रह जाए। 

ये सच है कि इसमें कुछ ऐसे भी जुड़ेंगे जो सही नहीं होंगे झूठ बोलेंगे और जिनके कारण सच बोलती महिलाओ पर भी शक किया जाएगा। लेकिन इनके बीच बहुत से सच बोलने वाले है। कुछ बिना मतलब लपेटे में आएंगे लेकिन बहुत सा है जो इसमें मतलब का भी निकलेगा।
राज्य मंत्री ,पत्रकार फिल्म सितारे ,टीवी कलाकार और बहुत से लोगो के रिश्तेदार के नाम आएं हैं आ रहें हैं।
ये रूदन है, रो ले देनी चाहिए ,चीख कर बोल लेने दे जो समझ नहीं आती है वो खुद को समझाने की कोशिशें कर रही क्योंकि तब वो कमजोर थी। बहुत सी है जो सजा दिलाने के लिए नहीं सिर्फ अपनी आपबीती बता रही हैं। हर काम हर बात सोच के नहीं किये जाते कुछ दिल से किये जाते क्योंकि दिल पर बोझ होता है जो बोलने से हल्का होता है।
 कितना ही जो अच्छा होता जो #MeToo कैंपेन औरतों और मर्दों की आपसी रंजिशों के कुचक्रों से ऊपर उठ समाज में एक स्वस्थ वातावरण रचने में सहायक हो। फिर ऐसा भी नहीं कि हर पुरुष कामुक और कुचेष्टाओं से ही लैस हो और हर महिला बेचारी। अपेक्षाकृत प्रतिशत कम ही पर पीड़ित पुरुषों को भी इस #MeToo कैंपेन से जुड़ना चाहिए और उन्हें भी बेनकाब करनी चाहिए कुछ अतिवादी चेहरे बजाए प्रतिद्वंद्विता और नये हैशटैग कैंपेन के। आखिर Me too का मतलब “मैं भी“ होता है।
 डीजिटल होती जा रही इस दुनिया को यदि इस तरह डीजिटली और सुखद बनाया जा सके, तो स्वागत है।



हाल की कुछ चर्चित घटनाएँ भारत में

कुछ दिनों पहले गुजरे जमाने की अदाकारा तनुश्री दत्ता अमेरिका से भारत लौटीं। यहां उन्होंने एक इंटरव्यू में अभिनेता नाना पाटेकर पर बदसलूकी के आरोप लगाए।
गायिका सोना महापात्रा और उसके बाद कुछ अन्य लकड़ियों ने गायक कैलाश खेर पर मीटू के तहत आरोपित किया।
राजनेताओं को भी मीटू की आग लपेटे में ले रही। लगभग नौ महिला पत्रकारों ने एक वरिष्ठ नेता पर आरोप लगाया है।


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