गुनगुन थानवी

आज की अहिल्या

  फेसबुक/ट्विटर  पर अचानक गुनगुन थानवी की पोस्ट ट्रेंड करने लगी है। ये पोस्ट असल में वर्षों से  पाषाण बनी एक अहिल्या के बोल हैं। इतने दिनों तक गूंगी बनी एक डरी सहमी गुड़िया की आँसुओं का बाँध टूटा है,  जो शब्दों के रूप में फेसबुक पर चर्चित होने के साथ ही समाज की  ढँकी छुपी एक कलुषित  चरित्र पर पड़ी काली चादर को खींच पूरी धृष्टता से निर्वस्त्र किया है। ऊँगली तो उसने एक बुढ़ाते स्थापित साहित्यकार की विकृत यौनेक्षा की तरफ़ इंगित किया है। थप्पड़ तो उसने एक नामी गिरामी मृत व्यक्ति को मारा है पर उसकी गूँज से ही बहुतेरे अपने गाल सहलाने लगे हैं।
लोग सवाल उठा रहें हैं कि इतने वर्षों के बाद अब ही क्यों इस राज को उठाया , पहले कभी क्यों नहीं।
तो इसका उत्तर यही है वर्षो उसने शिला बन हिम्मत रूपी राम की प्रतीक्षा की, अब जा कर वो राम मिले तो पाषाण से शब्द निर्झरणी फूट पड़ी। इंद्र की तरह आभा मंडल वाले उस दिग्गज के समक्ष एक सात साल की अबूझ नादान की क्या बिसात। खुद माता-पिता ने भी नहीं समझा होगा उसकी सिसकियों या बदलते व्यवहार को। शोषित करने वाला अपनी दैदीप्यमान छवि के पीछे एक यौन पिपासु विकृत छवि रखता था यानि बहुरुपिया था। यदि गुनगुन की बात सच है तो जैसे रावण बड़ा विद्वान् और शिव भक्त होने के साथ पापी और अधर्मी भी था वैसे ही ये महान साहित्यकार भी दस चेहरे रखतें थे।
    सवाल इस आक्षेप की शुचिता पर भी है कि अचानक एक महिला भीड़ से निकल एक आरोप लगाती है कि कैसे उसका विश्वास टूट गया बाकी बची आधी आबादी से। हो सकता है बातें गलत भी हो क्यूंकि दूसरा पक्ष रखने वाला तो अब है ही नहीं। तो हे संसार के सभी महापुरुषों सुन लो न सिर्फ उसकी बातें उसका रुदन, ये सिर्फ उसकी ही बातें शिकायतें नहीं है; ये उन अनगिनत महिलाओं की रुदन है जिन्होंने अब तक होठों को सिया हुआ है। क्यों डर गए कि कहीं और अहिल्याये न अपना मुख खोल दे? तो डरो ; सिर्फ डरो ही नहीं संभल भी जाओ अपनी दमित विकृत मानसिक बाल यौनिक इच्छाओं के प्रति। अभी तो मी टू अभियान और गुनगुन ने ही आगाज़ किया है आगे जाने कितनी शोर की आंधियां आएगी।
गुनगुन तुम और बोलो बोलो और चीखो तब तक चिल्लाओ जब तक तुम्हारा मन हल्का न हो जाये ताकि अपनी बाकि जिंदगी तुम अपने नाम को सार्थक करती गुनगुनाती रह सको।


द्वारा
रीता गुप्ता
कांके रोड
रांची


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