"इसकी तीज उसकी तीज" प्रभात खबर
इसकी तीज उसकी तीज
रोहिणी
और सुहानी पक्की सहेलियां थी. पक्केपन पर थोड़ी शंका हो रही है क्यूंकि
रोहिणी और सुहानी के जीवन स्तर में भारी फर्क था. रोहिणी और उसका पति कल्याण दोनों
ही एक विद्यालय में शिक्षक थे. सादा जीवन - उच्च विचार की उनकी जीवन की बैल गाड़ी
हिचकोले लेती चल रही थी. दूसरी ओर सुहानी थी, पूरी सेठानी. उसके पति बड़े व्यापारी थे. हवाई जहाज से नीचे की
सवारी तो चलती ही नहीं थी उसके घर. कहने का मतलब है दोनों के रहन सहन में जमीन
आसमान का अंतर था. पर दोनों थी सहेलियां.
सुहानी के मन में ये रहता था कि वह कोई ऐसी बात ना बोले जिससे रोहिणी
को ठेस पहुँच जाये, उसको
अपनी कमतरी या गरीबी का एहसास न हो जबकि रोहिणी शायद इतना नहीं सोचती थी, फुरसत किधर थी उसके पास.
तीज आ रही थी.
भाद्रपद शुक्ल की तृतीया को होने वाली
हरियाली तीज को दोनों ही सहेलियां करती थी. सुहानी की तैयारी कई दिनों से चल रही
थी. कितने दुकानों का चक्कर लगाया था तब जा कर उसे एक साड़ी पसंद आई थी. जरदोजी की
भारी काम वाली लाल साड़ी, मैचिंग
और डिज़ाइनर ब्लाउज लेने में उसके पसीने छूट गए. दो-चार दिन और चक्कर लगे बाज़ार के
तो वह हीरा जडित एक मंगलसूत्र ले पाई. फिर बाकी साज-श्रृंगार सामग्री भी लेना पड़ा.
पति को उसने अपनी खरीदारी दिखानी चाही पर उनके पास वक़्त ही नहीं
था. अलबत्ता उन्होंने कार्ड का लिमिट और अधिक करवा दिया ताकि तीज पर सुहानी
अपनी मन पसंद खरीदारी कर सके.
तीज के
दिन सुबह से गहमा-गहमी थी सुहानी के घर. नौकर को सुबह ही पांच तरह के फल, मेवे और प्रसाद लेने का
निर्देश दे दिया गया था. रसोइया नहा धो कर गुझिया बनाने में व्यस्त था. फोन पर
पंडित जी को शाम को ठीक मुहूर्त में आने को बोलते हुए सुहानी की नजर सड़क की तरफ
गयी तो देखा रोहिणी स्कूल जा रही है और दिनों की ही तरह.
"रोहिणी, आज भी स्कूल. व्रत नहीं रखा
है क्या?", सुहानी
ने चिल्लाते हुए पूछा.
"अरे ! तीज
पर स्कूल भला क्यूँ बंद होगा ? सुबह उठ
मैंने सरगही भी खायी है. अब दिन भर निर्जला रहूंगी. शामको फिर पूजा.
तुम्हारी तीज की तैयारी कैसी चल रही है ?", हड़बड़ी में जाती हुई रोहिणी ने पूछा.
"बस
कुछ खास नहीं. शाम को पंडित जी को बुलवाया है, आओगी?", सुहानी
की इस बात को अनसुनी कर तब तक रोहिणी स्कूल बस में चढ़ चुकी थी.
तब तक मेहंदी वाली भी आ गयी. अगले दो घंटो में उसने उसके हाथ-पैर में
सुंदर सी मेहंदी रचा दिया. सूखी मेहंदी हटाते हटाते दोपहर ढल चुकी थी कि
ब्यूटिशियन आ गयी. खिड़की से तभी देखा कि रोहिणी धीरे धीरे कुछ फल के पैकेट लिए बस
से उतर रही है. थोड़ा अफ़सोस सा हुआ सुहानी को कि रोहिणी की जिन्दगी कितनी बेरंग है.
पंडित जी, हरी
तालिका तीज की कथा, जिसमे
देवी पार्वती का हरण उनकी ही सहेलियों ने कर लिया था,सुना कर जा चुके थे.
अब तो रात्रि जागरण करनी थी और
सूर्योदय होने पर ही पारण करनी थी. जुबान सूख रही थी फिर साज़-सज्जा
भारी साड़ी के चलते थकावट भी महसूस हो रही थी. पर मन में सुकून था कि अपने प्यारे
पति देव की लम्बी उम्र के लिए उसने पूरी विधि -विधान से व्रत पूजा कर लिया था. छत
पर टहलते हुए, पति का
इन्तजार करने लगी.
आदतवश उसने रोहिणी की घर की तरफ नज़र डाला तो देखा, दोनों पति-पत्नी साथ हँसते
मुस्कुराते पूजा की थाल लिए घर से निकल रहें थें. रोहिणी ने अपनी शादी वाली ही
साड़ी को पहन रखा था, जो वह हर
वर्ष पहनती थी. कल्याण एक हाथ से पूजा की थाल पकडे हुए था और दूसरी हाथ से रोहिणी
को रिक्शे पर चढ़ने में मदद कर रहा था. रोहिणी ने उसकी तरफ देखा भी नहीं और दोनों
पति-पत्नी किसी बात पर जोर जोर से हँसते हुए शिव-मंदिर की तरफ बढ़ गए.
जाने क्यूँ सुहानी की
आँखों से दो बूँद आंसू टपक पड़े. मंगल सूत्र चुभने लगा और कंगन, झुमके, साड़ी वजनी लगने लगें.
मेहंदी बेरंग सी हो गयी. काजल- आलता बह निकले. सब कुछ झूठा, पाखण्ड और फरेबी सा लगने लगा.
Comments
Post a Comment