होली हैप्पी वाली सुरभि प्रभात खबर भेजे हैं ०६/०२/२०१७
होली हैप्पी वाली
“देखो मैं कहे देता हूँ,
मुझे ये होली वोली बिलकुल पसंद नहीं है. ये भी कोई त्यौहार है भला चेहरे को रंगवा
कर गंदगी पुतवा कर खुश हुआ जाये....”, हर साल ये कहते रहतें.
ये कहतें रहतें और मैं उनको
रंगती रहती. जितना चिढ़ते उतना आनंद आता उन्हें रंग लगाने. होली के बहुत पहले से
मेरी तैयारियां शुरू हो जाती. घर में सबके लिए नए कपडे खरीदना, उन्हें सिलवाने
देना. क्या नया बनाना है-पकाना है. महरी धोबी बिल्डिंग के गार्ड सबके लिए त्यौहार
के गिफ्ट लेना इत्यादि. दफ्त्तर में पहले ही सूचित कर देना कि होली के दो दिनों
पहले से मेरी छुट्टी. होलिका दहन के भी पहले घर में मेरी होली शुरू हो जाती.
पतिदेव सुबह उठते और और उनके रंगीन मुखड़े को देख घर के सभी लोग ठहाके लगाते.
भुनभुनाते हुए वे वाश बेसिन पर जा चेहरा धोने का उपक्रम करने लगते और होली को उनके
द्वारा कोसना जारी रहता….
“कोई भला व्यक्ति ऐसे कहीं
करता है? अब और कुछ नहीं तो स्केच पेन से मेरा चेहरा तुमने रंग दिया”, ये कुढ़ते
हुए कहते.
इस तरह से इनका कुडकुडाना
मुझे होली में दिवाली की फुलझड़ियों के छूटने का आभास दे देता और मैं रसोई घर से
पुआ बनाना छोड़ थोड़ा सा घोल इनके ऊपर डाल आती या फिर दहीबड़े के बड़े तलते
हुए दाल की पीठी ही मल देती. इनकी नाराजगी मुझे और उकसाती. सच पूछा जाये तो होली
का आनद वास्तव में ये चिढ़ने-नाराज होने वाले लोग ही देते हैं. होली के दिन तक मैं
रंग-अबीर को छोड़ घर में उपलब्ध सब कुछ इन्हें और बच्चों को लगा चुकी होती जैसे
हल्दी, नील, बेसन का घोल या फिर मक्खन-मलाई. त्यौहार के प्रति मेरी इस उत्साह से
मेरे बच्चें भी तरंगित होते. पहले छुटपन में वे रोने लगतें थे वहीँ बाद में अपने
हॉस्टल में सबसे ज्यादा मस्ती करने वालों में हो गएँ. हां, हर साल होली की सुबह वे
फोन कर घर की होली को जरूर याद करतें और मैं उन्हें उनके पापा की ताज़ा तरीन रंगीन
मुखड़े की तस्वीर भेज देती.
साल दर साल वर्ष गुजरतें गएँ, उम्र ने भी होली
खेल लिया हमारे संग, बालों की कालिमा में चांदी के रंग झलकने लगे. मेरा उत्साह मंद
हुआ पर बंद नहीं. इनके दोस्त कहते,
“यार तुमसे होली खेलने में
आनंद नहीं आता है पहले से रंग भींगे निकलते हो घर से. अब तुम्हे रंग लगायें भी तो
कहाँ”, मेरे रंग में रंगे पियाजी पर दूजा रंग चढ़ता भी भला कहां.
फिर एक वर्ष ऐसा आया जब ऐन
होली के पहले मुझे हॉस्पिटल में भरती होना पड़ा और होली के एक दिन पहले एक बड़ी शल्य
प्रक्रिया से मुझे गुजरना पड़ा. बहुत दुखी हुई थी मैं कि काश ये ऑपरेशन होली के बाद
होता पर ऑपरेशन के बाद की परेशानियों और दर्द में मैं वाकई होली भूल गयी. उस दिन
दोपहर तक तो मैं दवा के असर से अर्धबेहोशी अवस्था में ही थी. शाम वाली नर्स बहुत
मुस्कुराती हुई कमरे में घुसी और मुझे होली की शुभ कामनाएं दिया. फिर उसी वक़्त
इंजेक्शन देने आई नर्स, राउंड लगाने आयें डॉक्टर सब मुझे देख ठठा कर हंसने लगें. पास
ही पतिदेव को भी मंद मंद मुस्काते देखा.
“हद! है मैं तकलीफ में हूँ
और आपको बड़ी ख़ुशी हो रही है?”, मैंने चिढ़ते हुए कहा.
मुस्कुराती हुई नर्स उठी और
कमरे में टंगे शीशे को उतार मुझे दिखाया, मेरे क्लांत पीत मुख पर कलम से बनी नीली
मोटी मूंछ शोभायमान थी.
“हाय राम! ये मजाक किसने
किया?”, मैं चौंक गयी, कुछ खीज भी गयी कि उफ़ ये साफ़ कैसे होगा. मैं सोच ही रही थी
कि ये पास कर बोले,
“कहो कैसी रही? हैप्पी
होली!! इतने वर्षों से तुमने कभी नहीं छोड़ा मुझे होली में रंगना तो इस वर्ष मैं
कैसे जाने देता होली को सूखी सूखी”.
..... और फिर जब तक
हॉस्पिटल में रही मेरी नीली मूंछें हलकी होते हुए भी विराजमान रही. हर आने वाला
व्यक्ति कई दिनों तक होली का आनंद मुझे देख लेता रहा और मेरी मूंछों वाली फोटो तो
मेरे ऑपरेशन के खबर के साथ हर रिश्तेदार तक पहुँचती ही रही.
Comments
Post a Comment