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एक लोटा दूध

एक लोटा दूध  बचपन में हम ने अकबर बीरबल की कहानियां खूब पढ़ी है जिसमें कोई न कोई सन्देश निहितार्थ रहता ही था। अकबर पूछते और बीरबल सुलझाते। जाहिर सा बात है ये सब किदवन्तियाँ ही हैं। एक कहानी वहीं  की सुनती हूँ, एक बार अकबर ने बीरबल से पूछा कि कैसे पता चले कि मेरे दरबारी ईमानदार हैं? बीरबल ने कुछ सोच कर एक उपाय बताया, अकबर ने संशय और विस्मय से बीरबल की ओर  देखा पर  फिर एलान किया किया कि कल सभी दरबारी अपने घर से एक लोटा दूध लाएंगे वो भी ढक्कन लगा कर और बाग़ के कोने में खाली पड़े हौद (पानी की टंकी) के ढक्कन को उठा उसमें डाल देंगे बिना किसी को दिखाए।  अगले दिन इस पूरे आयोजन के बाद सभी दरबारियों और अकबर के समक्ष जब हौद का ढक्कन हटाया गया तो उसमें सिर्फ पानी ही पानी था, दूध का नामोनिशान नहीं के बराबर। सभी दरबारियों के सर झुक गएँ। बीरबल ने तब कहा, "सबने यही सोचा कि सब तो दूध डाल ही रहें हैं मेरे एक लोटा पानी डालने से क्या फर्क पड़ेगा" क्या इसी सोच ने हमारे देश की जल,थल और वायु को एक बड़े से  कचड़े घर  में नहीं तब्दील कर दिया है ? मेरे एक बॉटल फेंकने या थूकने से क्या ही