badbu - published in sarita
शीर्षक- दुर्गन्ध "इत्ती रात गए किधर से आ रहे हो ? हम सब परेशान हुए जा रहें थें कि शाम से तू किधर है ." बापू की पूछताछ ,किसना को अखर गयी . "चुप-चाप तुम से सोया न जाता है ,अरे जरा मुझे भी सूकून से अपने हिसाब से जीने दो ",किसना की तल्खी देख बापू उसका समझ गया कि कोई तीर जरूर मार कर आया है उनका बेटा , चलो निखट्टू ने आज कुछ तो किया ,सोचते हुए वह नींद की आगोश में गुम हो गया . कमरे में कमली अधनींदी सी लेटी हुई थी,आहट सुन उठ बैठी . देखा, किसना ने कुछ नोट निकाला और उसे अलमारी में रखने लगा . कमली की आँखे ख़ुशी से चमक उठी ,लगता है दो महीने ईंट भट्टी में काम करने का पगार आखिर मिल ही गया . क्षण भर में जरूरतों की झिलमिल करती लम्बी फेहरिस्त पूरी होती दिखने लगी . "लगता है रज्जाक मियां ने तुम्हारी पूरी पगार दे ही दिया आखिर . मैं तो सोच रही थी कि हर बार की तरह इस बार भी आज कल कर छह महीने में आधी देगा ",कमली ने चहकते हुए पूछा . "अरे वह क्यों देने लगा ?इतना ही सीधा होता तो हमारा खून क्यूँ पीता ",किसना ने खाट पर पसरते हुए कहा . कमली ने देखा किसना प