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Showing posts from November, 2017

badbu - published in sarita

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शीर्षक- दुर्गन्ध   "इत्ती रात गए किधर से आ रहे हो  ? हम सब परेशान  हुए जा रहें थें कि शाम से तू किधर है ." बापू की पूछताछ ,किसना को अखर गयी . "चुप-चाप तुम से सोया न जाता है ,अरे जरा मुझे भी सूकून से अपने हिसाब से जीने दो ",किसना की तल्खी देख बापू  उसका समझ गया कि कोई तीर जरूर मार कर आया है उनका बेटा , चलो निखट्टू ने आज कुछ तो किया ,सोचते हुए वह नींद की आगोश में गुम हो गया . कमरे में कमली अधनींदी सी लेटी  हुई  थी,आहट  सुन उठ बैठी . देखा, किसना ने कुछ नोट निकाला  और उसे अलमारी में रखने लगा . कमली की आँखे ख़ुशी से चमक उठी ,लगता है दो  महीने ईंट भट्टी में काम करने का पगार आखिर मिल ही गया . क्षण भर में  जरूरतों की झिलमिल करती लम्बी फेहरिस्त पूरी होती दिखने लगी . "लगता है रज्जाक मियां ने तुम्हारी पूरी पगार दे ही दिया आखिर . मैं तो सोच रही थी कि हर बार की तरह इस बार भी आज कल कर छह महीने में आधी देगा ",कमली ने चहकते हुए पूछा . "अरे वह क्यों देने लगा ?इतना ही सीधा होता तो हमारा खून क्यूँ पीता ",किसना ने खाट पर पसरते हुए कहा . कमली ने देखा किसना प

अहा जिन्दगी के “ आशीर्वाद” हेतु एक पत्र

अहा जिन्दगी के “ आशीर्वाद” हेतु एक पत्र सिडनी ,  ०६/०६/२०१६   मेरी प्यारी माँ ,                                                     सादर प्रणाम. आशा है तुम कुशल पूर्वक होगी. अभी कल ही तुम्हारे पास बीस दिनों की छुट्टियाँ बिता लौटी हूँ. पहले जैसी स्थिति होती तो मुझे तुम्हारे पास से लौट कर पत्र लिखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती. मिलने पर हम वैसे भी अनवरत दिन-रात बातें करतें थे उसके अलावा फोन पर गप्पें मारतें ही. पत्र तो बीती वक़्त की बात हो गयी है. पर सारी बातें उन्ही अनखुलीं पोटलियों में सिमटी मेरे साथ ही वापस ऑस्ट्रेलिया चली आयीं. वैसी ही अनछुई , जैसा मैं यहाँ से जाते वक़्त दो साल की यादों को समेट सहेज ले गयी थी.        पिछली बार , दो वर्ष पहले जब मैं तुम्हारे पास से चलने लगी थी और झुक कर जब चरण-स्पर्श किया तो माथे पर गरम आंसू की कुछ बूंदे आशीर्वाद स्वरुप मानों टपक पड़ें थें. आज भी माथे पर वह तरलता महसूस होती है , तुम्हारी पसीजती गीली ठंडी हथेलियों का मेरे गालों पर स्पर्श कर कहना , “ जा बिट्टो सुखी रह ”. आज बहुत याद आ रही है क्यूंकि इस बार तो तुमने कुछ कहना तो दूर देखा तक नहीं .

"शिद्दत-ए-एहसास" साहित्य अमृत में प्रकाशित

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शिद्दत-ए-एहसास         कमरें में दमघोंटू घुटन छाई जा रही थी. दर्द अपनी सीमायें चीर सहस्त्र बाहुओं से कंठ अवरुद्ध करने को आमादा था. वैसे भी वहां जीना कौन चाहता था. पर एक दूसरे को मरता भी नहीं देखा जा रहा था. हर आती सांस बेमतलब और बेमानी थी. क्या करना था उन अनचाही साँसों का. रोम रोम चीख चीख नकार रहा था, पर बेशर्म साँस फिर भी हर पल आ कर खड़ी हो जाती. निर्लज्ज हो हर पल जीने को विवश कर जाती. दो लोग मिल कर संघर्ष कर रहें थें कि किसी तरह जिन्दगी को ठुकरा दिया जाये. पर जिन्दगी खुद ब खुद हर क्षण गले पड़ी जा रही थी.     सब्र और बर्दास्त ने जब अपनी हदों का पूर्ण अतिक्रमण कर दिया तो अल्पना उठ खड़ी हुई, एक भरपूर नजर सामने तड़पते हर्ष पर डाला और कार की चाभी ले तेजी से निकल पड़ी. कहा जाये दौड़ ही पड़ी, हर्ष अपनी नाम का अर्थ खोता हुआ विषाद और नैराश्य भाव से जाती हुई अल्पना को देखता रहा. उसमें इतनी भी जिजीविषा शेष नहीं थी कि मौत को गले लगाने जा रही अपनी पत्नी अल्पना को रोक ले. प्यार की ये भी एक चरमोत्कर्ष भाव ही है कि प्रिय की वेदना यदि किसी तरह दूर होती है,तो बस हो ही जाये, चाहे वह मौत को गले लगाने से

तीज स्पेशल प्रभात खबर में प्रकाशित

तीज स्पेशल इसकी तीज उसकी तीज      रोहिणी और सुहानी पक्की सहेलियां थी. पक्केपन  पर थोड़ी शंका हो रही है क्यूंकि रोहिणी और सुहानी के जीवन स्तर में भारी फर्क था. रोहिणी और उसका पति कल्याण दोनों ही एक विद्यालय में शिक्षक थे. सादा जीवन - उच्च विचार की उनकी जीवन की बैल गाड़ी हिचकोले लेती चल रही थी. दूसरी ओर सुहानी थी, पूरी सेठानी. उसके पति बड़े व्यापारी थे. हवाई जहाज से नीचे  की सवारी तो चलती ही नहीं थी उसके घर. कहने का मतलब है दोनों के रहन सहन में जमीन आसमान का अंतर था. पर दोनों थी सहेलियां.       सुहानी के मन में ये रहता था कि वह कोई ऐसी बात ना बोले जिससे रोहिणी को ठेस पहुँच जाये , उसको अपनी कमतरी का एहसास न  हो जबकि रोहिणी शायद इतना नहीं  सोचती थी, फुरसत किधर थी उसके पास. तीज आ रही थी. इस हरियाली तीज को दोनों ही सहेलियां करती थी. सुहानी की तैयारी कई दिनों से चल रही थी. कितने दुकानों का चक्कर लगाया तब जा कर उसे एक साड़ी पसंद आई. जरदोजी की भारी काम वाली साड़ी, मैचिंग और डिज़ाइनर ब्लाउज लेने में उसके पसीने छूट गए. दो-चार दिन और चक्कर लगे बाज़ार के तो वह हीरा जडित एक मंगलसूत्र ले पाई. फिर बाकी स

"भैया मुझे कुछ कहना है" दैनिक भास्कर मधुरिमा २४/०८/२०१६

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मेरे प्यारे भैया,              तुम सुखी, स्वस्थ और दीर्घायु हो यही मेरी कामना है. मैं क्या हर बहन अपने भाई के लिए सदैव मंगल कामना ही करती है. भैया बदलें में मैंने सिर्फ तुमसे एक वचन ही चाहा है कि तुम सदैव मेरी रक्षा करोगे. हाँ तुमसे मेरा रक्त सम्बन्ध है, हम एक माँ की संतान हैं. तुम मेरी रक्षा को सदैव तत्पर रहते भी हो. इसके लिए मैं खुद को सौभाग्यशाली मानती भी हूँ.   पर भैया जब मैं सड़क पर कहीं जा रहीं होती हूँ, कॉलेज से लौट रहीं होती हूँ या देर रात दफ्त्तर से निकलती हूँ तो तुम वहां हमेशा तो नहीं होते हो. वहां मुझे मिलतें हैं वो नर पिशाच जो इन्सान की खाल ओढ़े अबला स्त्रियों की अस्मिता को तार तार करने को बेताब दिखतें हैं. वह भी तो किसी के भाई होते होंगे पर दूसरों की बहनों पर कुदृष्टि डालने का कुकृत्य वे बेख़ौफ़ कर गुजरतें हैं.   भैया तुम अपनी बहन को सकुशल घर लौट आने पर सुकून की सांस ले निश्चिन्त हो जाते होगे. कई बातें रोज घटतीं हैं जिन्हें मैं हर दिन चुपचाप सह लेतीं हूँ ताकि बात का बतंगड़ ना बनें. तुम परेशां ना हो जाओ. कहीं मेरे पंख ना क़तर दियें जाएँ. कहीं घर परिवार में मैं बदनाम ना हो

"सामंजस्य" published in grihshobha september second 2016

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सामंजस्य रमोला के हाथ जल्दी जल्दी काम निपटा रहें थें पर आँखे , रसोई की खिड़की से बाहर गेट की तरफ  आस लगाये ताक रही थीं. चाय की घूँट लेते हुए वह सैंडविच टोस्टर में ब्रेड लगाने  लगी. " श्रेयांश जल्दी नहा कर निकलो वरना देर हो जाएगी " , बेटे को उसने आवाज दिया . " मम्मा मेरे मोज़े नहीं मिल रहें " , श्रेयांश ने आवाज लगाई. मोज़े खोजने के चक्कर में चाय ठंडी हो गयी. बेटे को तैयार होने में मदद करने , रमोला उसके कमरे की तरफ भागी . उसके बस्ते में सब चेक किया और पानी की बोतल को भरने लगी . " चलो बेटा दूध -कॉर्नफ़्लेक्स जल्दी ख़तम करो , ये केला भी खाना है " " मम्मा आज लंच बॉक्स में क्या दिया है ?", श्रेयांश के इस सवाल से वह बड़ा घबराती थी . " सैंड विच " , धीरे से उसने कहा क्यूंकि आगे क्या होने वाला है उसे पता ही था .हुआ भी वही ..... " उफ़ ! आपने कल भी यही दिया था . मैं नहीं ले जाऊंगा. रेहान की मम्मी हर दिन उसे बदल बदल कर चीजें देती हैं लंच बॉक्स में " , श्रेयांश अब पैर पटक जिद्द करने लगा था . " मालती दीदी दो दिनों से नहीं

"इसकी तीज उसकी तीज" प्रभात खबर

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इसकी तीज उसकी तीज       रोहिणी और सुहानी पक्की सहेलियां थी. पक्केपन  पर थोड़ी शंका हो रही है क्यूंकि रोहिणी और सुहानी के जीवन स्तर में भारी फर्क था. रोहिणी और उसका पति कल्याण दोनों ही एक विद्यालय में शिक्षक थे. सादा जीवन - उच्च विचार की उनकी जीवन की बैल गाड़ी हिचकोले लेती चल रही थी. दूसरी ओर सुहानी थी , पूरी सेठानी. उसके पति बड़े व्यापारी थे. हवाई जहाज से नीचे  की सवारी तो चलती ही नहीं थी उसके घर. कहने का मतलब है दोनों के रहन सहन में जमीन आसमान का अंतर था. पर दोनों थी सहेलियां.         सुहानी के मन में ये रहता था कि वह कोई ऐसी बात ना बोले जिससे रोहिणी को ठेस पहुँच जाये , उसको अपनी कमतरी या गरीबी का एहसास न  हो जबकि रोहिणी शायद इतना नहीं सोचती थी , फुरसत किधर थी उसके पास. तीज आ रही थी.      भाद्रपद शुक्ल की तृतीया को होने वाली हरियाली तीज को दोनों ही सहेलियां करती थी. सुहानी की तैयारी कई दिनों से चल रही थी. कितने दुकानों का चक्कर लगाया था तब जा कर उसे एक साड़ी पसंद आई थी. जरदोजी की भारी काम वाली लाल साड़ी , मैचिंग और डिज़ाइनर ब्लाउज लेने में उसके पसीने छूट गए. दो-चार दिन और चक्कर ल

मेरा शहर साफ़ हो इसमें सबका हाथ हो गृहशोभा

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Whatsapp group लेखक संपादक दिल्ली प्रेस पर हुई चर्चा और सर के बताये विषय आधारित. १६/१०/२०१६. सवर्ण जातियां सोचती हैं कि गंद हटाने का काम दलित भंगियों का है और उन्हें हम गंद में रहने को मजबूर करते हैं. भंगियों की दृष्टि से कैसे देखेंगे ? विचार दें कि क्या लिख सकते है इस पर , कौन लिखेगा ? ।।।।। आजकल सरकारी नौकरी के लालच मे ऊँची जातिया भी यह काम करने को तैयार  है .. सही कहा।अभी कुछ दिन पहले सफाई कर्मचारियों खी जगह निकली थी सामान्य जातियो के लिये Sir we have house keeping staff in society , no body ask them their caste , They work as house keeping and  house maid too .  I feel in metros with them their is no caste discrimination . Before keeping housemaid too nobody asks their caste ........... whatsapp ग्रुप पर उस दिन हुई चर्चा  आधारित एक आलेख _______________________________________________________________________ मेरा शहर साफ़ हो इसमें सबका हाथ हो    एक  आलेख द्वारा रीता गुप्ता   मेरी एक रिश्तेदार की बीच शहर में ही बड़ी सी कोठी है. दिवाली के कोई दो दिनों के बाद मै