ब्रेकअप तेरे कितने रूप मुक्त february प्रथम
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फोन की घंटी बजते ही रसिका की मम्मी उपमा ने जल्दी से उठाया, जाने कितनी देर से उनकी सांसे अटकी हुई थी। सारे देवी देवताओं को उन्होंने इस दरम्यान याद कर लिया था कि आज बात बन जाये। दरअसल रसिका, जो बंगलुरु में नौकरी करती है , आज एक लड़के से मिलने एक रेस्टोरेंट में गयी थी। सजातीय इस लड़के के बारे में उसके पापा मम्मी को ऑनलाइन मैट्रिमोनियल साइट से पता चला था।
"हेलो रसिका! मिल आयी उदित से ? कैसा लगा?"
मम्मी अपनी उत्कंठा छुपाये नहीं छुपा पा रही थी। एक चुप्पी के बाद रसिका ने उखड़े उखड़े स्वर में कहा,
"नहीं मम्मी बिलकुल भी इम्प्रेसिव व्यक्तित्व नहीं है। अब ठीक है कि वह टॉप कॉलेज से पढ़ा हुआ है पर थोड़ा तो अच्छा दिखना ही चाहिए। केवल डिग्री से क्या होना है, मुझे तो बहुत अनस्मार्ट लगा, मैं नहीं करने वाली इससे शादी। तुम अब दूसरा खोजो"
यह कहते हुए रसिका ने फोन काट दिया। उसकी मम्मी देर सोचती रह गयी, अब तक कुल सात लड़कों से रसिका मिल चुकी थी। लड़के क्या कहते उसके पहले ही ये कोई नुक्स निकाल मम्मी को मना कर देती। अब पिछली बार इसे शिकायत थी कि लड़के ने अच्छे कॉलेज से पढ़ाई नहीं किया है। कितनी मशक्कत के बाद उदित के प्रोफाइल को छांटा गया था उसे भी इसने एक झटके में नकार दिया। इंजिनीरिंग फिर mba करते करते ही रसिका की इतनी उम्र निकल गयी तिस पर लड़कों को इतना छांटना। वे चिंतित हो उठीं। उन्हें याद हो आया रसिका का इंजिनीरिंग कॉलेज का वो दोस्त जो दोस्त से कुछ अधिक समझ आता था 'स्वप्निल' . उपमा को रसिका उसके बारे में खूब बताती थी। उन चार सालों में उपमा समझ गयी थी कि स्वप्निल ही उसका भावी दामाद है। फिर रसिका mba करने लगी और स्वतः ही उसकी बातों से स्वप्निल गुम होता चला गया। कभी खोद खोद कर उपमा ने बेटी से पूछना भी चाहा तो पता लगता कि दोनों का संपर्कसूत्र ही टूटा हुआ है। अब जोर शोर से रसिका की शादी का सोचा जा रहा है पर उसे कोई लड़का जंच ही नहीं रहा है।
कॉलेजों में आजकल बहुत आम है लड़के लड़कियों का दोस्ती से बढ़ कर कुछ और होना। ये प्यार ये लगाव स्कूली बच्चों की तुलना में परिपक्व होते हैं और बहुत सारी ऐसी दोस्तियाँ सुखद शादी में तब्दील भी हो जाते हैं। वहीं कुछ जोड़ों को जाति पाती और धर्म के चलते अलग हो जाना होता है जब परिवार वाले उनके दोस्त को दामाद या बहू के रूप में स्वीकारने से इंकार कर देते हैं। पर हमेशा परिवार या माता पिता ही कारण नहीं होते हैं ब्रेकअप के लिए , बल्कि आज कल के समझदार मातापिता राहत ही महसूस करतें हैं कि उनके बच्चों को अपना मनपसंद जीवन साथी मिल रहा है। ब्रेक अप के कई कारण होतें हैं, जिनमें जोड़े खुद आपसी सहमती से अलग हो जातें हैं पर उस टूटन की टीस शायद रह जाती है हमेशा के लिए , अंतर्मन में उस पार्टनर की प्रतिच्छाया बसी रह जाती है जिसे वह अपने संभावित पार्टनर में खोजता रहता है।
रूही और उत्सव बचपन के मित्र थें, बाद में उन्होंने साथ ही कॉलेज की पढाई भी किया। उत्सव जहाँ बेहद शांत सौम्य और मितभाषी था वहीँ रूही चुलबुली सी खूब बातें करने वाली लड़की थी। दोनों की आपस में खूब पटती भी थी। दोनों ने विदेश जा कर आगे पढ़ने का प्लान सोचा हुआ था और उसके पहले शादी। इस बीच घटनाक्रम काफी तेजी से घटित हुआ, उत्सव के पिताजी का देहांत हो गया और उसने जो पहली नौकरी मिली उसे करना शुरू कर दिया , आगे विदेश जा कर पढ़ने का प्लान धरा रह गया। रूही अपने माता पिता को बता चुकी थी और वे उत्सव से अपनी बेटी की शादी करने के लिए तैयार भी थे पर उत्सव जिम्मेदारियों की बोझ तले ऐसा दबता चला गया कि अपनी जिंदगी के विषय में सोचना ही छोड़ दिया। रूही कुछ वर्षों तक उसे मनाती रही, उसे आगे बढ़ने पढ़ने के लिए भी प्रेरित करती रही पर उत्सव पीछे हटता चला गया और रूही से खुद को विलग कर लिया। हार कर रूही अकेले ही विदेश गयी आगे पढ़ने। उसके पिता दुखी मन से उसके लिए नए वर संधान में लगे हुए हैं।
वहीं बहुत उदहारण ऐसे भी मिलते हैं जब लड़के और लड़किया दोनों मजे के लिए कैंपस में प्रेमी प्रेमिका बन घूमते हैं। माता पिता को छोड़ पूरी दुनिया भले उनकी अंतरंगता को जान रही हो। कैंपस से निकलते ही दोनों अपने अपने रास्ते चल देते हैं।
समृद्धि हैरान रह गयी जब उसे सुम्मी की शादी का कार्ड मिला क्यूंकि उस पर किसी और लड़के का नाम था। समृद्धि को कैंपस के वो दिन याद आ गए जब सुम्मी राकेश के साथ बाइक के पीछे बैठी घूमती रहती थी। कैंटीन हो या क्लासरूम दोनों हमेशा साथ साथ ही दिखते थें। उसकी शादी में मौका देख समृद्धि ने धीरे से पूछ ही लिया कि राकेश से क्यों नहीं हो सकी शादी तो सुम्मी ने हँसतें हुए कहा,
"हम तो सिर्फ दोस्त थे"
समृद्धि के आँखों के सामने कैंपस के उनदोनों के बहुतेरे सीन घूम गएँ, वह सोच में पड़ गयी कि क्या वे वास्तव में सिर्फ दोस्त ही थे।
बदलते वक़्त के साथ शादी के प्रति युवाओं का नजरिया भी बेहद बदला है। पहले जहाँ अधिकांश लड़कियां सिर्फ शादी करने के लिए ही पढ़ाई करती थीं और शादी के बाद ज्यादा न सोचते हुए अपने घर बच्चें इत्यादि सँभालने में लग जाती थी। पर वक़्त के साथ ये अवधारणा बदल चुकी है, लड़कियों की शादी की औसत उम्र बढ़ती जा रही है। पहले पढ़ाई, करियर और सपनों को पूरा करने के ही बाद ही शादी ब्याह का नंबर आ पाता है। पर इस चक्कर में स्वभाव और व्यवहार का वो लचीलापन ख़तम होने लगता है। अपनी पसंद या नापसंदगी के प्रति ढृढ़ता का भाव जागृत होने लगता है, जो बढ़ती उम्र के साथ एकदूसरे संग सामंजस्य बैठाने में बाधक बनती है। अब लडकियां भी जोरदार तरीके से अपनी शादी पर राय जाहिर करती हैं , यही बात आज चुभ भी जाती है कितनो को।
रजत और झिलमिल की दोस्ती कई सालों से चल रही थी। दोनों एक दूसरे के घर भी आते जाते थे। एक दिन अचानक रजत ने अपनी मम्मी के सामने दिल खोल दिया,
"मम्मी झिलमिल में वाइफ मटेरियल का अभाव है "
"मतलब क्या है तुम्हारा? इतने दिनों तक साथ घूमने के बाद ये ख्याल नहीं आनी चाहिए, उसके प्रति अन्याय हो जायेगा",
रजत की मम्मी ने चौंकते हुए पूछा।
"मैं सच कह रहा हूँ, वो सिर्फ दोस्त के रूप में अच्छी है पर एक पत्नी के रूप में मुझे वह ठीक नहीं लगती है। तुमने कभी पापा के किसी बात को काटा है? कैसे दौड़ दौड़ कर तुम उनकी सेवा करती हो। क्या कभी झिलमिल से मैं ऐसी आशा कर सकता हूँ? हर बात पर वह बहस कर लेगी या बेतुके नारीवादी तर्क देने लगेगी। "
रजत की बात सुन उसकी मम्मी अचंभित रह गयी। वे उसे समझाने की कोशिश करने लगी कि वक़्त बदल गया है, वे नौकरी नहीं करती थी और पति सेवा उसका धर्म है कुछ इस सोच के साथ उनकी परवरिश ही हुई थी। झिलमिल आज की पढ़ी लिखी बाहर की दुनिया से ताल मिला कर चलने वाली लड़की है। उसकी सोच परिपक्व है और वह उससे बेहतर जीवन साथी साबित होगी। परन्तु रजत के दिमाग में जो पत्नी का खाका बना हुआ था, उसमें अब झिलमिल फिट बैठती नहीं दिखने लगी। इस बात को बीते दो वर्ष होने को आये, शादी के प्रति रजत की अरुचि भांप झिलमिल खुद ही उससे कटने लगी और कुछ ही महीनों के अंदर उसने अपने पापा के द्वारा खोजे एक लड़के संग ब्याह कर घर बसा लिया। रजत आज तक वैसी लड़की खोज रहा है जो पढ़ीलिखी और स्मार्ट हो झिलमिल की तरह पर घर में उसकी मम्मी की तरह की पत्नी बन कर रहे। हो सकता है कभी मिल भी जाए पर तब तक उसके माता पिता का बुरा हाल है, उन्हें छोटे बेटे की भी शादी करनी है।
आजकल समझदार माता-पिता अपने पढ़ेलिखे बच्चों की पसंद का सम्मान और विश्वास करते हुए ज्यादा अड़चने नहीं खड़ी करतें हैं। क्यों कि वे देख रहें हैं समाज में कि आजकल सिर्फ लड़कियों की ही नहीं लकड़ों की शादी में भी दिक्कतें आ रहीं हैं। अपेक्षाओं का आसमान इतना बृहद इतना विस्तृत होता है भावी जीवन साथी से कि उस मापदंड पर खरा मिलना/खोजना असंभव सा हो जाता है। अपनी पसंद की शादियों में कुछ ऊँच-नीच बच्चे बर्दास्त कर लेते हैं। पर जब माता-पिता को खोजने की जिम्मेदारी देते हैं हैं तो साथ में अपनी पसंद-नापसंद की फेहरिश्त थमा देते हैं वे ।
रुबीना और आकर्ष की जोड़ी एक आदर्श जोड़ी है। एक सी सोच और मानसिकता ने ही उन्हें करीब लाया था। परन्तु दोनों के घर वालों ने इस शादी के लिए इंकार कर दिया तो दोनों ही मान गए , परन्तु उन्हें बिलकुल उन्ही गुणों से पूर्ण जीवन साथी खोजने की जिम्मेदारी दे दी है जो वे एक दूजे में पसंद करते थे। फ़िलहाल ब्रेकअप वाली स्तिथि से दोनों गुजर रहें हैं और इन्तजार कर रहें हैं कब उनका मनपसंद जीवन साथी मिलेगा। जीवन की सुनहरी घड़ियाँ गुजर रही हैं और माता पिता नाक़ाम से साबित हो रहें हैं परफेक्ट वर /वधू संधान में क्यूंकि रुबीना और आकर्ष को तो बिलकुल एक दूजे जैसे ही साथी की तलाश है।
आनंद और रश्मि एक ही ऑफिस में काम करते थे। पर रश्मि ने तेजी से तरक्की कर लिया। उसे आनंद से ज्यादा बोनस मिला और एक प्रमोशन भी। जहाँ पहले दोनों एक दूसरे से बात करने-मिलने के बहाने ढूंढते थे अब एक दूसरे से कन्नी काटने लगें हैं।
अवंतिका को इसी तरह समर्थ की अवहेलना और नज़रअंदाज़ी जब नागवार गुजरने लगी तो उसने एक दिन विभिन्न सूत्रों से पता करवाया। समर्थ को पिछले साल छह महीनों के लिए विदेश भेजा गया था वहीं वह किसी दूसरी लड़की से दोस्ती कर उसके प्रति समर्पित हो गया था। पर अपनी चार साल पुरानी गर्ल फ्रेंड अवंतिका को वह बता नहीं पा रहा था कि अब उसकी रूचि उसमें समाप्त हो गयी है। ब्रेक अप तो हुआ पर उसका निशान शायद अवंतिका के दिल पर सदा के लिए अंकित रह जाये।
जितनी आसानी से आजकल दोस्ती होती है उतनी ही तेजी से टूटती भी दिखती है। कुछ जोड़े सफलतापूर्वक दोस्ती, डेटिंग की अवस्था पार कर जीवन साथी बन एक सफल खुशहाल जिंदगी जीते हैं तो वहीं कई जोड़े शादी के बंधन में बंधने से पूर्व ही किन्ही कारणों से जुदा हो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि मातापिता हमेशा खुश ही होते हैं जब उनके बेटे या बेटी का ब्रेकअप होता है। बल्कि ज्यादातर माँ बाप दुखी होतें हैं अपने बच्चे के लिए क्यूंकि वे जानते हैं कि अगले रिश्ते में भी वह पिछले का ही अक्स खोजगा।
आसान नहीं है ब्रेकअप से उबरना। चाहे लड़का हो या लड़की दोनों के दिल टूटते हैं, लम्बे समय की डेटिंग के पश्चात् दोनों को एक दूसरे की आदत हो जाती है। फिर कहीं और किसी से जुड़ने में बहुत वक़्त भी लगता है क्यूंकि आड़े आती हैं वो यादे जो दोनों ने साथ साथ जिया था। परन्तु जिंदगी रूकती नहीं है किसी ब्रेकअप के बाद भी। शादी कर कडुआहट भरी जिंदगी जीने से तो बेहतर है कि पहले ही अलग हो जाएँ। कई बार युवा डिप्रेशन की अवस्था तक पहुँच जाते हैं, रिश्तों से विश्वास तक उठ जाता है , परन्तु ये कोई हल नहीं है। मजबूत हो आगे की सोचनी ही होगी। बीती ताहि बिसार दे , आगे की सुध ले।
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