"साढ़े दस हज़ार का फोन" समीक्षा

कहानी "साढ़े दस हज़ार का फोन"  जो प्रकाशित हुई है हंस पत्रिका के नए अंक में। कहानी है निशा और मीरा दो औरतों की जो प्रतिनिधित्व कर रहीं हैं अपना अपना वर्ग। वंदना जी ने बाखूबी इन दोनों वर्गों की सोच और जीवन दर्शन को अपनी कलम से उभारा है बिना किसी शब्द आडंबर के। कहानी की सरलता सहजता और संवाद निर्झरणी की तरह समभाव बहती रही और दिल को छूती एक खूबसूरत अंत तक मानस उदधि से जा मिली। 
बधाई हो वंदना जी इसी तरह मनभावन कहानियाँ गढ़ती रहें और मानव मन की सीवन उधेड़ उसकी छिपी परतें प्रदर्शित करती रहें, शुभ कामनाएं। 


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