बलात्कार ...... कैसे जन्म लेती है ये हैवानियत
बलात्कार
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बलात्कार- समस्या और समाधान
हाल के समय में ये शब्द "बलात्कार" शायद सबसे ज्यादा ख़बरों में रहा, यही वो एक शब्द है जो लड़कियों और उनके घरवालों के लिए सबसे ज्यादा डरावना भी है। मूल शब्द बलात्, जिसका मतलब जबरदस्ती होता है से बना ये शब्द बृहद रूप में 'किसी भी शख़्स की मर्ज़ी के बग़ैर उसके साथ जिस्मानी रिश्ता कायम करना बलात्कार होता है।' यह एक जुर्म है।
अपने शहर रांची में घटी निर्भया काण्ड के मुख्य आरोपी राहुल राज को उम्र कैद की सजा सुनाई गयी है। सजा सुनाने के बाद पर अख़बारों में छपे उसके चित्र में दिख रही मुस्कराहट और सुकून ने ये सोचने को विवश कर दिया कि आखिर क्यों करते हैं बलात्कार।
पितृसत्तात्मक सोच इसकी जड़ है जो महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझता है। उन्हें सिर्फ उपभोग की वस्तु ही समझता रहा है। अपनी इन्द्रियों को वश में रखने में असफ़ल ये बलात्कारी बेख़ौफ़ हो कुकर्म कर जातें हैं। बलात्कार सहित सारी स्त्री विरुद्ध हिंसाओं की जड़ पितृसत्तात्मक और पुरुषवादी सोच है। इस तथ्य से शायद ही कोई असहमत होगा। जितना यह सोच पोषित होगी उतना ही स्त्री के विरुद्ध होने वाले अपराधों में इज़ाफ़ा होगा ।हर पुरुषवादी व्यक्ति बलात्कारी नहीं होता लेकिन हर बलात्कारी पुरुषवादी अहम से ग्रसित होता है। पल्लवी त्रिवेदी, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, भोपाल इस समस्या को दो श्रेणियों में बांटती हैं,
1- आर्थिक आधार पर मिडिल,अपर मिडिल और हायर क्लास पुरुषों द्वारा किये जाने वाले बलात्कार ।
२- लोअर मिडिल क्लास और लोअर क्लास के पुरुषों द्वारा किये जाने वाले बलात्कार।
पहली श्रेणी में शामिल वो सफ़ेदपोश पढ़े लिखे नरपिशाच होतें हैं जो कुत्सित मानसिकता के साथ करीबी या दूर के रिश्तेदार, पडोसी, मित्र, बॉस , शिक्षक,सहपाठी या सहकर्मी होतें हैं जो परिचित होतें हैं। पारिवारिक बदला या जातीयता भी कारण होते हैं इस श्रेणी में। वे छोटे लड़कों -लड़कियों को भी नहीं छोड़तें हैं। ये विक्टिम (अपने शिकार) की नासमझी, डर या दुर्बलता का फायदा उठाते हैं। समाज में सभ्यता का मुखौटा लगाए ये लोग जानते हैं कि उनके विरुद्ध ऐसी आरोपों को कोई सच नहीं मानेगा बल्कि विक्टिम को ही दोष दिया जायेगा। ये हिंसक नहीं होते हैं और हत्या जैसे अपराधों से बच के रहतें हैं।
समाधान -
बच्चों को छुटपन से ही सही गलत स्पर्शों के विषय में बताया जाये। माता पिता का रिश्ता बच्चों के साथ इतना सहज हो कि वे अपने साथ हो रहे किसी दुर्व्यवहार को बताने से हिचकिचाएं नहीं। कोई डरा रहा या ब्लैकमेल कर रहा ये बात यदि माता पिता जान जाएँ शुरू में ही तो आवश्यक कदम उठाये जा सकतें हैं। ये बात लड़कियों के दिमाग में कूट कूट कर भरने की आवशयकता है कि अपराधी बलात्कारी होता है न कि बलत्कृत। और इस बात को जेहन में सभी को बैठा लेने कि जरुरत है कि इसे शुचिता और इज्जत से बिलकुल नहीं जोड़ा जाये। ये भी एक तरह का शारीरिक प्रहार ही होता है। जैसे गुनहगार चोर होता है वैसे ही पाप की गठरी बलात्कारी के सर ही होगी। चाहे बलात्कारी किसी भी रिश्ते या ओहदे पर हो उसका सामाजिक बहिष्कार के साथ साथ सजा अवश्य दिलानी चाहिए ताकि दूसरे लोग भी डरें।
दूसरी श्रेणी में वो बलात्कारी होते हैं जिन्हें ये एहसास भी नहीं होता कि वे कुछ अपराध भी कर रहे हैं। अक्सर नशे के आदि होतें हैं, इनकी परवरिश और परिवेश का बहुत हाथ होता है इस प्रवृत्ति के लिए। सर्व उपलब्ध सस्ती कामुक सामग्री इनकी कामुकता को इनकी समझ के दायरे से बाहर कर देती है। वैसे दिखने में दबे कुचले और ड्राइवर क्लीनर खलासी रेहड़ लगाने जैसे काम करने वाले या फिर बेरोजगार क्षणिक आवेश में उत्तेजित हो कभी अकेले तो कभी समूह में बलात्कार जैसी घिनौनी कृत्य को कर गुजरते हैं। विक्टिम अक्सर कोई अनजान अकेली ही होती है जिन्हे ये शायद ही पहले से जानते हों। विकृत मानसिकता वाले ये बलात्कारी हाल के दिनों में पाशविकता की सीमा पार कर अपनी दमित कुंठित क्रूर अमानवीय व्यवहारों से समाज और देश को कलंकित कर रहें हैं।
इनलोगो की पहचान बेहद जटिल है, भीड़ से अचानक कौन सा चेहरा बाहर आ कर निर्दयता से किसी लड़की के जीवन तक से खेल जायेगा कहना मुश्किल है। भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता ,मुखौटे के पीछे की विकृत आचरण अप्रत्याशित होता है। जहाँ तक हो इनसे बचने की जरुरत है। सभ्य समाज में ये कहते शर्म आती है कि हम आधी आबादी को कहते हैं की आप बच कर रहें, अपनी सुरक्षा के लिए एहतियात खुद बरतें।
मानसिकता
अलीगढ़, उत्तर प्रदेश की Psychiatrist डॉ. अंतरा गुप्ता कहती हैं कि रेपिस्ट अपनी काम भावना को कंट्रोल नहीं कर पाते हैं। अगर कोई लड़की उन्हें पसंद आ जाती है, तो उन्हें लगता है कि वो हर हाल में मिलनी चाहिए, चाहे वो हां कहे या ना। न ही वे इसे कंट्रोल करना चाहते हैं। ऐसे लोगों के लिए रेप बदला लेने का माध्यम भी बन जाता है. कुछ ऐसे मनोरोगी भी होते हैं कि उन्हें दूसरों को नुकसान पहुंचाकर अच्छा लगता है।
समाधान
आज हर हाथ में मोबाइल इंटरनेट के जरिये समय से पहले ही युवक पोर्न साइट इत्यादि देख अपरिपक्व कामुकता से भर उठता है। इसमें बेरोजगारी भी एक बड़ा कारण है जहाँ खाली दिमाग शैतान का डेरा होती है। फ़िल्में और ऐड भी महिलाओं को एक भोग्या के रूप में ही प्रस्तुत करती हैं।
मानसिकता में आमूल परिवर्तन के लिए छुटपन से ही लड़कों को समझाना होगा कि लडकियां भी उनकी ही जैसी एक इंसान हैं। इसकी शुरुआत घर से ही होनी चाहिए।
रेप दोषियों पर त्वरित और कठोर क़ानूनी कार्यवाही हो। तुलसीदास जी ने कहा है, "बिनु भय होत न प्रीत". जब तक समाज में बलात्कार को कड़े दंड से कुचला नहीं जायेगा अपराधियों के मन में खौफ पैदा नहीं होगा।
https://epaper.prabhatkhabar.com/2536671/Surbhi/Surbhi?fbclid=IwAR1fosRO69_vrLngS0k0SLAb1heC5iQP7_bAgHBRfrPmuz7uCZf0iFiHqnQ#page/1/1
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बलात्कार- समस्या और समाधान
हाल के समय में ये शब्द "बलात्कार" शायद सबसे ज्यादा ख़बरों में रहा, यही वो एक शब्द है जो लड़कियों और उनके घरवालों के लिए सबसे ज्यादा डरावना भी है। मूल शब्द बलात्, जिसका मतलब जबरदस्ती होता है से बना ये शब्द बृहद रूप में 'किसी भी शख़्स की मर्ज़ी के बग़ैर उसके साथ जिस्मानी रिश्ता कायम करना बलात्कार होता है।' यह एक जुर्म है।
अपने शहर रांची में घटी निर्भया काण्ड के मुख्य आरोपी राहुल राज को उम्र कैद की सजा सुनाई गयी है। सजा सुनाने के बाद पर अख़बारों में छपे उसके चित्र में दिख रही मुस्कराहट और सुकून ने ये सोचने को विवश कर दिया कि आखिर क्यों करते हैं बलात्कार।
पितृसत्तात्मक सोच इसकी जड़ है जो महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझता है। उन्हें सिर्फ उपभोग की वस्तु ही समझता रहा है। अपनी इन्द्रियों को वश में रखने में असफ़ल ये बलात्कारी बेख़ौफ़ हो कुकर्म कर जातें हैं। बलात्कार सहित सारी स्त्री विरुद्ध हिंसाओं की जड़ पितृसत्तात्मक और पुरुषवादी सोच है। इस तथ्य से शायद ही कोई असहमत होगा। जितना यह सोच पोषित होगी उतना ही स्त्री के विरुद्ध होने वाले अपराधों में इज़ाफ़ा होगा ।हर पुरुषवादी व्यक्ति बलात्कारी नहीं होता लेकिन हर बलात्कारी पुरुषवादी अहम से ग्रसित होता है। पल्लवी त्रिवेदी, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, भोपाल इस समस्या को दो श्रेणियों में बांटती हैं,
1- आर्थिक आधार पर मिडिल,अपर मिडिल और हायर क्लास पुरुषों द्वारा किये जाने वाले बलात्कार ।
२- लोअर मिडिल क्लास और लोअर क्लास के पुरुषों द्वारा किये जाने वाले बलात्कार।
पहली श्रेणी में शामिल वो सफ़ेदपोश पढ़े लिखे नरपिशाच होतें हैं जो कुत्सित मानसिकता के साथ करीबी या दूर के रिश्तेदार, पडोसी, मित्र, बॉस , शिक्षक,सहपाठी या सहकर्मी होतें हैं जो परिचित होतें हैं। पारिवारिक बदला या जातीयता भी कारण होते हैं इस श्रेणी में। वे छोटे लड़कों -लड़कियों को भी नहीं छोड़तें हैं। ये विक्टिम (अपने शिकार) की नासमझी, डर या दुर्बलता का फायदा उठाते हैं। समाज में सभ्यता का मुखौटा लगाए ये लोग जानते हैं कि उनके विरुद्ध ऐसी आरोपों को कोई सच नहीं मानेगा बल्कि विक्टिम को ही दोष दिया जायेगा। ये हिंसक नहीं होते हैं और हत्या जैसे अपराधों से बच के रहतें हैं।
समाधान -
बच्चों को छुटपन से ही सही गलत स्पर्शों के विषय में बताया जाये। माता पिता का रिश्ता बच्चों के साथ इतना सहज हो कि वे अपने साथ हो रहे किसी दुर्व्यवहार को बताने से हिचकिचाएं नहीं। कोई डरा रहा या ब्लैकमेल कर रहा ये बात यदि माता पिता जान जाएँ शुरू में ही तो आवश्यक कदम उठाये जा सकतें हैं। ये बात लड़कियों के दिमाग में कूट कूट कर भरने की आवशयकता है कि अपराधी बलात्कारी होता है न कि बलत्कृत। और इस बात को जेहन में सभी को बैठा लेने कि जरुरत है कि इसे शुचिता और इज्जत से बिलकुल नहीं जोड़ा जाये। ये भी एक तरह का शारीरिक प्रहार ही होता है। जैसे गुनहगार चोर होता है वैसे ही पाप की गठरी बलात्कारी के सर ही होगी। चाहे बलात्कारी किसी भी रिश्ते या ओहदे पर हो उसका सामाजिक बहिष्कार के साथ साथ सजा अवश्य दिलानी चाहिए ताकि दूसरे लोग भी डरें।
दूसरी श्रेणी में वो बलात्कारी होते हैं जिन्हें ये एहसास भी नहीं होता कि वे कुछ अपराध भी कर रहे हैं। अक्सर नशे के आदि होतें हैं, इनकी परवरिश और परिवेश का बहुत हाथ होता है इस प्रवृत्ति के लिए। सर्व उपलब्ध सस्ती कामुक सामग्री इनकी कामुकता को इनकी समझ के दायरे से बाहर कर देती है। वैसे दिखने में दबे कुचले और ड्राइवर क्लीनर खलासी रेहड़ लगाने जैसे काम करने वाले या फिर बेरोजगार क्षणिक आवेश में उत्तेजित हो कभी अकेले तो कभी समूह में बलात्कार जैसी घिनौनी कृत्य को कर गुजरते हैं। विक्टिम अक्सर कोई अनजान अकेली ही होती है जिन्हे ये शायद ही पहले से जानते हों। विकृत मानसिकता वाले ये बलात्कारी हाल के दिनों में पाशविकता की सीमा पार कर अपनी दमित कुंठित क्रूर अमानवीय व्यवहारों से समाज और देश को कलंकित कर रहें हैं।
इनलोगो की पहचान बेहद जटिल है, भीड़ से अचानक कौन सा चेहरा बाहर आ कर निर्दयता से किसी लड़की के जीवन तक से खेल जायेगा कहना मुश्किल है। भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता ,मुखौटे के पीछे की विकृत आचरण अप्रत्याशित होता है। जहाँ तक हो इनसे बचने की जरुरत है। सभ्य समाज में ये कहते शर्म आती है कि हम आधी आबादी को कहते हैं की आप बच कर रहें, अपनी सुरक्षा के लिए एहतियात खुद बरतें।
मानसिकता
अलीगढ़, उत्तर प्रदेश की Psychiatrist डॉ. अंतरा गुप्ता कहती हैं कि रेपिस्ट अपनी काम भावना को कंट्रोल नहीं कर पाते हैं। अगर कोई लड़की उन्हें पसंद आ जाती है, तो उन्हें लगता है कि वो हर हाल में मिलनी चाहिए, चाहे वो हां कहे या ना। न ही वे इसे कंट्रोल करना चाहते हैं। ऐसे लोगों के लिए रेप बदला लेने का माध्यम भी बन जाता है. कुछ ऐसे मनोरोगी भी होते हैं कि उन्हें दूसरों को नुकसान पहुंचाकर अच्छा लगता है।
समाधान
आज हर हाथ में मोबाइल इंटरनेट के जरिये समय से पहले ही युवक पोर्न साइट इत्यादि देख अपरिपक्व कामुकता से भर उठता है। इसमें बेरोजगारी भी एक बड़ा कारण है जहाँ खाली दिमाग शैतान का डेरा होती है। फ़िल्में और ऐड भी महिलाओं को एक भोग्या के रूप में ही प्रस्तुत करती हैं।
मानसिकता में आमूल परिवर्तन के लिए छुटपन से ही लड़कों को समझाना होगा कि लडकियां भी उनकी ही जैसी एक इंसान हैं। इसकी शुरुआत घर से ही होनी चाहिए।
रेप दोषियों पर त्वरित और कठोर क़ानूनी कार्यवाही हो। तुलसीदास जी ने कहा है, "बिनु भय होत न प्रीत". जब तक समाज में बलात्कार को कड़े दंड से कुचला नहीं जायेगा अपराधियों के मन में खौफ पैदा नहीं होगा।
https://epaper.prabhatkhabar.com/2536671/Surbhi/Surbhi?fbclid=IwAR1fosRO69_vrLngS0k0SLAb1heC5iQP7_bAgHBRfrPmuz7uCZf0iFiHqnQ#page/1/1
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