किताबों से जुड़ कर देखिए
क्या आप भी दिन भर कचरा चुनते हैं?
(एक युवा का पुस्तक प्रेम)
किताबों से जुड़ कर देखिए
मेरे पिताजी को पुस्तकों का बहुत शौक रहा है, उन्हें ही देख हम दोनों बहनो को भी बचपन से ही पुस्तक प्रेम रहा है। कोर्स के किताबों के इतर एक न एक किताब हमारी चालू रहती थीं, जिन्हें हम दिन भर में जब समय मिलता पढ़ते रहतें, अक्सर स्कूल जाते वक़्त बस में या फिर सारी पढ़ाई कर रात में सोने से पहले। मम्मी भी पापा के रंग में रंग गयी थी और अखबार वाले से सारी पत्रिकाएं मंगवाती थी। हमारे घर में तो ऐसा हाल था कि टीवी चले हफ़्तों बीत जाते। उस वक़्त टीवी पर खूब कार्टून चैनल्स आते थें पर हमें एक भी चरित्र का अतापता नहीं था। यही हम दोनों बहनें पिछड़ जाती अपने दोस्तों से जब कार्टून चरित्रों की बात होती वरना हम कक्षा में प्रथम आने से ले कर स्कूल की हर गतिविधियों में अग्र रहतें थें। आज भी नौकरी-घर की व्यस्तताओं के बीच भी हमारा नावेल चलता रहता है, बैग में या सिरहाने बुकमार्क लगा हमारी किताबें रहतीं हैं।
इस बीच समय बहुत तेजी से बदला, सूचना संचार ने तो क्रांतिकारी छलांग लगा ली। हमारे बचपन में जहाँ टीवी छाया हुआ था आज स्मार्ट फोन ने सबकी जगह ले ली है। पर पुस्तकों को ले कर जो मेरे विचार तब थें; वो आज भी अडिग है। पढ़ने के शौक़ीन लोग कंप्यूटर और अब फोन पर ही पुस्तकें डाउनलोड कर अब पढ़ने लगें हैं। इंटरनेट पर इ-पुस्तकें भरी हुई हैं। ज्ञान प्राप्त करना शायद इतना आसान कभी नहीं था। सोचिये गुरुकुल में जा कर ज्ञान पाने से अपनी मुठ्ठी में पकड़ें मोबाइल पर ही उसे पा लेना कितनी दूरी तय की है हमने और ये कितनी बड़ी उपलब्धी भी है। ज्ञान का अथाह सागर ठाठें मार रहा है, कुआं खुद प्यासे के पास आ गया है। सभी पत्र-पत्रिकाएं भी ऑनलाइन प्राप्य हैं। कोर्स की किताबों से ले कर रोचक रोमांचक उपन्यास और कहानियां मौजूद हैं।
हम कहीं चले जाएँ, खाली बैठा रिक्शेवाले से ले कर सिनेमा हाल में बैठा दर्शक इंटरवल के दौरान मोबाइल पर ही व्यस्त दिखता है। अब अकेलापन खलता नहीं, यूं कहें मोबाइल क्रांति ने भावनाओं के स्वरुप में भी परिवर्तन ला दिया है। स्कूल जातें बच्चें हो या घर में बैठें बजुर्ग सभी मोबाइल में व्यस्त। पर वास्तव में ये करतें क्या हैं बातें करने के सिवा इस पर? क्या सभी ज्ञान गंगा में हाथ धो रहें होतें हैं? नहीं बिलकुल नहीं, ये खाली वक़्त में कचरा चुनते रहतें हैं। चौंकें नहीं वास्तव में ये कचरा ही चुनते रहतें हैं और उसे अपने मस्तिष्क में भर प्रदूषित करतें हैं। ज्यादातर लोग सोशल मीडिया उवाचों और व्हाट्सअप के फॉरवर्ड मेसेजों को पढ़तें हैं। गुड मॉर्निंग गुड नाईट जैसे फालतू मेसेजों के अलावा विचारों को आहत करने वाले, साम्प्रदायिकता या राजनीती से प्रेरित पोस्ट्स होतें हैं। सूचना क्रांति की इस दौर में ये आजकल जन मानस के विचारधारा को पलट देने की कुव्वत रखतें हैं। सच में खाली वक़्त हो या काम के वक़्त लोगों को जहाँ वक़्त मिलता है वे मोबाइल खोल या तो गंदगी फैलातें रहतें हैं अपने उटपटांग बातों से, नहीं तो दूसरों द्वारा फैलाई कार्बनडाई ऑक्साइड रुपी विचारों की गंदे धुंएँ में जीने लगतें हैं। कॉपी पेस्ट के इस युग में मौलिकता आहें भरने को मजबूर है। ऐसा नहीं हैं कि सब कीचड़ या कचड़ा ही है, इस अथाह सागर में ज्ञान के अनगिनत मोती भी बिखरे हुए हैं। जरुरत है हंस की तरह सिर्फ मोती चुनने की आदत की।
विज्ञान का हर चमत्कार दोधारी तलवार की तरह होती है। जैसे एटोमिक बम का आविष्कार, आइंस्टीन के फॉर्मूले से बम बनाया गया पर आइंस्टीन हमेशा इसके विध्वंसक रूप की भर्त्सना करते रहें और उनकी मर्जी के खिलाफ इसका इस्तेमाल भी किया गया। (कहीं जर्मन न बना ले इस वजह से उन्हें साइन करना पड़ा) . विज्ञान नौकर अच्छा है पर मालिक नहीं। मुझे डर है कि कहीं सूचना क्रांति की बेलगाम विकास 'बम' ना साबित हो जाये। सो पढ़ने के लिए यदि आप आज भी पुस्तकों का इस्तेमाल करतें हैं तो आप बहुत मानसिक कचड़ा जामवन की प्रक्रिया से बच जायेंगें। आप पुस्तकों की खुशबू को महसूस करें, वर्षों बाद पन्ने पलटते वक़्त कोई पुरानी याद ताज़ा हो सामने आ खड़ी होगी। देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू का पुस्तकों के बारें में कहना था कि जो पुस्तकें सबसे ज्यादा सोचने को मजबूर करें वही उत्तम पुस्तके हैं। पढ़ने की आदत से इंसान का दिमाग सतत विचारशील रहता है। इससे उसके सोचने समझने के दायरे का विस्तार होता है। उसका विवेक सदा क्रियाशील रहता है। रूस में एक कहावत है, कि जहाँ सौ प्रतिशत बुद्धि लगती हो वहां एक प्रतिशत सहज व्यावहारिक बुद्धि से बेहतर काम होता है। यह कॉमन सेंस सिर्फ पुस्तकों व पठन-पाठन से ही विकसित होता है।
पुस्तकें पढ़ने के अनेक फायदे हैं जैसे-
१- पुस्तकें हर उम्र के इंसान का सच्चा मार्गदर्शक है। बच्चा हो या बूढ़ा यदि उसे पढ़ने की आदत है तो वह सदा विवेकशील और संतुलित व्यवहार का रहेगा।
२- तनाव का कम होना। जब हम पूरी एकाग्रता से पुस्तकों में डूबें रहतें हैं तो बाकी सारी बातें उन पलों में भूल जातें हैं और इस तरह अपने तनाव को कुछ कम कर लेते हैं।
३- जहाँ इलेक्ट्रॉनिक कृत्रिम लाइट नींद में बाधक बनती है वहीँ पुस्तकें माँ की लोरी की तरह सुकूनदायी नींद का आगोश देती है।
४- पुस्तकें हमारे व्यक्तित्व को सजग और बेहतर बनाती है। हमारी यादाश्त शक्ति का भी विकास करती हैं।
५- अच्छी पुस्तकों की संगति से बढ़ कर कोई मित्र नहीं। कल्पना कीजिये जब हम विश्व के महान लेखकों या विचारको से घिरे बैठें हो तो नकारात्मकता किधर से प्रवेश करेगी।
६- शब्दों के तीर बेहद मारक होतें हैं। कहतें हैं जैसा अन्न वैसा तन और जैसी पुस्तकें वैसा मन। उनका असर हमेशा बना रहता है।
हरि अनंत हरि कथा अनंता की तरह पुस्तकों की महिमा अपरम्पार है।
मेरे पापा का पुस्तक प्रेम आज तक जिन्दा है। माँ के जाने बाद भी ये पुस्तकें उनके सच्चे दोस्त बने हुए हैं। सुबह शाम देर रात तक वे विभिन्न विषयों की पुस्तकों को अपने सीने से लगाएं रॉकिंग चेयर पर आज भी पढ़तें हैं। सुबह अखबार के बाद माँ की पुरानी पत्रिकाओं को भी उलटते -पलटते रहतें हैं मानों माँ को उसमे पातें हों । उनकी सजगता और मानसिक सक्रियता सिर्फ मुझे ही नहीं मेरी उम्र की अन्य युवाओं को भी उत्प्रेरित करती है। मुझे ख़ुशी है कि पुस्तक प्रेम मुझे विरासत में उनसे प्राप्त है।
द्वारा- रीता गुप्ता
(एक युवा का पुस्तक प्रेम)
किताबों से जुड़ कर देखिए
मेरे पिताजी को पुस्तकों का बहुत शौक रहा है, उन्हें ही देख हम दोनों बहनो को भी बचपन से ही पुस्तक प्रेम रहा है। कोर्स के किताबों के इतर एक न एक किताब हमारी चालू रहती थीं, जिन्हें हम दिन भर में जब समय मिलता पढ़ते रहतें, अक्सर स्कूल जाते वक़्त बस में या फिर सारी पढ़ाई कर रात में सोने से पहले। मम्मी भी पापा के रंग में रंग गयी थी और अखबार वाले से सारी पत्रिकाएं मंगवाती थी। हमारे घर में तो ऐसा हाल था कि टीवी चले हफ़्तों बीत जाते। उस वक़्त टीवी पर खूब कार्टून चैनल्स आते थें पर हमें एक भी चरित्र का अतापता नहीं था। यही हम दोनों बहनें पिछड़ जाती अपने दोस्तों से जब कार्टून चरित्रों की बात होती वरना हम कक्षा में प्रथम आने से ले कर स्कूल की हर गतिविधियों में अग्र रहतें थें। आज भी नौकरी-घर की व्यस्तताओं के बीच भी हमारा नावेल चलता रहता है, बैग में या सिरहाने बुकमार्क लगा हमारी किताबें रहतीं हैं।
इस बीच समय बहुत तेजी से बदला, सूचना संचार ने तो क्रांतिकारी छलांग लगा ली। हमारे बचपन में जहाँ टीवी छाया हुआ था आज स्मार्ट फोन ने सबकी जगह ले ली है। पर पुस्तकों को ले कर जो मेरे विचार तब थें; वो आज भी अडिग है। पढ़ने के शौक़ीन लोग कंप्यूटर और अब फोन पर ही पुस्तकें डाउनलोड कर अब पढ़ने लगें हैं। इंटरनेट पर इ-पुस्तकें भरी हुई हैं। ज्ञान प्राप्त करना शायद इतना आसान कभी नहीं था। सोचिये गुरुकुल में जा कर ज्ञान पाने से अपनी मुठ्ठी में पकड़ें मोबाइल पर ही उसे पा लेना कितनी दूरी तय की है हमने और ये कितनी बड़ी उपलब्धी भी है। ज्ञान का अथाह सागर ठाठें मार रहा है, कुआं खुद प्यासे के पास आ गया है। सभी पत्र-पत्रिकाएं भी ऑनलाइन प्राप्य हैं। कोर्स की किताबों से ले कर रोचक रोमांचक उपन्यास और कहानियां मौजूद हैं।
हम कहीं चले जाएँ, खाली बैठा रिक्शेवाले से ले कर सिनेमा हाल में बैठा दर्शक इंटरवल के दौरान मोबाइल पर ही व्यस्त दिखता है। अब अकेलापन खलता नहीं, यूं कहें मोबाइल क्रांति ने भावनाओं के स्वरुप में भी परिवर्तन ला दिया है। स्कूल जातें बच्चें हो या घर में बैठें बजुर्ग सभी मोबाइल में व्यस्त। पर वास्तव में ये करतें क्या हैं बातें करने के सिवा इस पर? क्या सभी ज्ञान गंगा में हाथ धो रहें होतें हैं? नहीं बिलकुल नहीं, ये खाली वक़्त में कचरा चुनते रहतें हैं। चौंकें नहीं वास्तव में ये कचरा ही चुनते रहतें हैं और उसे अपने मस्तिष्क में भर प्रदूषित करतें हैं। ज्यादातर लोग सोशल मीडिया उवाचों और व्हाट्सअप के फॉरवर्ड मेसेजों को पढ़तें हैं। गुड मॉर्निंग गुड नाईट जैसे फालतू मेसेजों के अलावा विचारों को आहत करने वाले, साम्प्रदायिकता या राजनीती से प्रेरित पोस्ट्स होतें हैं। सूचना क्रांति की इस दौर में ये आजकल जन मानस के विचारधारा को पलट देने की कुव्वत रखतें हैं। सच में खाली वक़्त हो या काम के वक़्त लोगों को जहाँ वक़्त मिलता है वे मोबाइल खोल या तो गंदगी फैलातें रहतें हैं अपने उटपटांग बातों से, नहीं तो दूसरों द्वारा फैलाई कार्बनडाई ऑक्साइड रुपी विचारों की गंदे धुंएँ में जीने लगतें हैं। कॉपी पेस्ट के इस युग में मौलिकता आहें भरने को मजबूर है। ऐसा नहीं हैं कि सब कीचड़ या कचड़ा ही है, इस अथाह सागर में ज्ञान के अनगिनत मोती भी बिखरे हुए हैं। जरुरत है हंस की तरह सिर्फ मोती चुनने की आदत की।
विज्ञान का हर चमत्कार दोधारी तलवार की तरह होती है। जैसे एटोमिक बम का आविष्कार, आइंस्टीन के फॉर्मूले से बम बनाया गया पर आइंस्टीन हमेशा इसके विध्वंसक रूप की भर्त्सना करते रहें और उनकी मर्जी के खिलाफ इसका इस्तेमाल भी किया गया। (कहीं जर्मन न बना ले इस वजह से उन्हें साइन करना पड़ा) . विज्ञान नौकर अच्छा है पर मालिक नहीं। मुझे डर है कि कहीं सूचना क्रांति की बेलगाम विकास 'बम' ना साबित हो जाये। सो पढ़ने के लिए यदि आप आज भी पुस्तकों का इस्तेमाल करतें हैं तो आप बहुत मानसिक कचड़ा जामवन की प्रक्रिया से बच जायेंगें। आप पुस्तकों की खुशबू को महसूस करें, वर्षों बाद पन्ने पलटते वक़्त कोई पुरानी याद ताज़ा हो सामने आ खड़ी होगी। देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू का पुस्तकों के बारें में कहना था कि जो पुस्तकें सबसे ज्यादा सोचने को मजबूर करें वही उत्तम पुस्तके हैं। पढ़ने की आदत से इंसान का दिमाग सतत विचारशील रहता है। इससे उसके सोचने समझने के दायरे का विस्तार होता है। उसका विवेक सदा क्रियाशील रहता है। रूस में एक कहावत है, कि जहाँ सौ प्रतिशत बुद्धि लगती हो वहां एक प्रतिशत सहज व्यावहारिक बुद्धि से बेहतर काम होता है। यह कॉमन सेंस सिर्फ पुस्तकों व पठन-पाठन से ही विकसित होता है।
पुस्तकें पढ़ने के अनेक फायदे हैं जैसे-
१- पुस्तकें हर उम्र के इंसान का सच्चा मार्गदर्शक है। बच्चा हो या बूढ़ा यदि उसे पढ़ने की आदत है तो वह सदा विवेकशील और संतुलित व्यवहार का रहेगा।
२- तनाव का कम होना। जब हम पूरी एकाग्रता से पुस्तकों में डूबें रहतें हैं तो बाकी सारी बातें उन पलों में भूल जातें हैं और इस तरह अपने तनाव को कुछ कम कर लेते हैं।
३- जहाँ इलेक्ट्रॉनिक कृत्रिम लाइट नींद में बाधक बनती है वहीँ पुस्तकें माँ की लोरी की तरह सुकूनदायी नींद का आगोश देती है।
४- पुस्तकें हमारे व्यक्तित्व को सजग और बेहतर बनाती है। हमारी यादाश्त शक्ति का भी विकास करती हैं।
५- अच्छी पुस्तकों की संगति से बढ़ कर कोई मित्र नहीं। कल्पना कीजिये जब हम विश्व के महान लेखकों या विचारको से घिरे बैठें हो तो नकारात्मकता किधर से प्रवेश करेगी।
६- शब्दों के तीर बेहद मारक होतें हैं। कहतें हैं जैसा अन्न वैसा तन और जैसी पुस्तकें वैसा मन। उनका असर हमेशा बना रहता है।
हरि अनंत हरि कथा अनंता की तरह पुस्तकों की महिमा अपरम्पार है।
मेरे पापा का पुस्तक प्रेम आज तक जिन्दा है। माँ के जाने बाद भी ये पुस्तकें उनके सच्चे दोस्त बने हुए हैं। सुबह शाम देर रात तक वे विभिन्न विषयों की पुस्तकों को अपने सीने से लगाएं रॉकिंग चेयर पर आज भी पढ़तें हैं। सुबह अखबार के बाद माँ की पुरानी पत्रिकाओं को भी उलटते -पलटते रहतें हैं मानों माँ को उसमे पातें हों । उनकी सजगता और मानसिक सक्रियता सिर्फ मुझे ही नहीं मेरी उम्र की अन्य युवाओं को भी उत्प्रेरित करती है। मुझे ख़ुशी है कि पुस्तक प्रेम मुझे विरासत में उनसे प्राप्त है।
द्वारा- रीता गुप्ता
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