पानीपत
मूवी रिव्यु
पानीपत
कुछ नकारात्मक रिव्यु पढ़ने के बाद मैं ठिठक गयी थी कि इस मूवी को देखी जाये या नहीं। आज वोट डालने के बाद इस मूवी को देखने का बस मन बना ही लिया। रांची का वो प्रमुख मल्टीप्लेक्स भरा हुआ था खचाखच।
मूवी मुझे तो अच्छी लगी। ऐतिहासिक तथ्यों से परे हट मैंने एक फिल्म की तरह इसे एन्जॉय किया। सीन दर सीन आशुतोष गोवारिकर की मेहनत दिख रही है। पानीपत मूवी की भव्यता हॉल के बड़े स्क्रीन पर ही अच्छी दिखेगी।इसकी भव्यता और युद्ध के सीन बहुत बढ़िया हैं, ट्रीट टू आईज हैं।
देशभक्ति का जज़्बा भी छलकता रहा......
हर छोटे बड़े कलाकार ने अपने अभिनय से मन को मोहा। अर्जुन कपूर को ले कर ही टिप्पणियां पढ़ रही थी पर उसके मजबूत डीलडौल ने योद्धा के चरित्र में जान डाल दिया, वहीं कृति सैनॉन ने बरेली की बर्फी से एक लम्बा सफ़र तय कर इस मूवी में पूरी परिपक्व नज़र आयीं। आँखों से भी उनका अभिनय कमाल रहा। ट्रेलर देख लगा था कि संजय दत्त का विलेन क़िरदार कहीं हीरो को न खा जाये पर फिल्म में संतुलन बना रहा। लंबी होने के बावजूद फिल्म बांधे रखने में सफल रही। बाजीराव वाली मस्तानी के पुत्र के चरित्र को देखना सुखद था और हाँ यदि costume की बड़ाई नहीं की तो गलत होगा। सेट्स और कपड़े प्रभावशाली थे।
मेरे साथ जाने वाले पूरी मूवी में सो नहीं पाए ( जो थोड़ा भी बोरिंग होते ही हॉल में झपकियां लेने लगते हैं) फिल्म की दिलचस्प होने की गवाही है।
गीत नृत्य उतने प्रभावी नहीं थें कि घर आने पर भी याद रहें।
पानीपत
कुछ नकारात्मक रिव्यु पढ़ने के बाद मैं ठिठक गयी थी कि इस मूवी को देखी जाये या नहीं। आज वोट डालने के बाद इस मूवी को देखने का बस मन बना ही लिया। रांची का वो प्रमुख मल्टीप्लेक्स भरा हुआ था खचाखच।
मूवी मुझे तो अच्छी लगी। ऐतिहासिक तथ्यों से परे हट मैंने एक फिल्म की तरह इसे एन्जॉय किया। सीन दर सीन आशुतोष गोवारिकर की मेहनत दिख रही है। पानीपत मूवी की भव्यता हॉल के बड़े स्क्रीन पर ही अच्छी दिखेगी।इसकी भव्यता और युद्ध के सीन बहुत बढ़िया हैं, ट्रीट टू आईज हैं।
देशभक्ति का जज़्बा भी छलकता रहा......
हर छोटे बड़े कलाकार ने अपने अभिनय से मन को मोहा। अर्जुन कपूर को ले कर ही टिप्पणियां पढ़ रही थी पर उसके मजबूत डीलडौल ने योद्धा के चरित्र में जान डाल दिया, वहीं कृति सैनॉन ने बरेली की बर्फी से एक लम्बा सफ़र तय कर इस मूवी में पूरी परिपक्व नज़र आयीं। आँखों से भी उनका अभिनय कमाल रहा। ट्रेलर देख लगा था कि संजय दत्त का विलेन क़िरदार कहीं हीरो को न खा जाये पर फिल्म में संतुलन बना रहा। लंबी होने के बावजूद फिल्म बांधे रखने में सफल रही। बाजीराव वाली मस्तानी के पुत्र के चरित्र को देखना सुखद था और हाँ यदि costume की बड़ाई नहीं की तो गलत होगा। सेट्स और कपड़े प्रभावशाली थे।
मेरे साथ जाने वाले पूरी मूवी में सो नहीं पाए ( जो थोड़ा भी बोरिंग होते ही हॉल में झपकियां लेने लगते हैं) फिल्म की दिलचस्प होने की गवाही है।
गीत नृत्य उतने प्रभावी नहीं थें कि घर आने पर भी याद रहें।
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