मदर डे स्पेशल मेरी प्यारी माँ, प्रभात खबर इ पेपर में पब्लिश हुई
मदर डे स्पेशल
मेरी प्यारी माँ,
सादर चरण स्पर्श.
‘माँ’ शब्द अपने आप में ही काफी परिपूर्ण है.
इस एक शब्द में दुनिया की सारी भावनाएं समाहित हैं जिनपर अक्सर स्नेहिल और सहृदय
भाव का वर्चस्व रहता है. मैंने महसूस किया है कि इस ममत्व पूर्ण भाव से आप भी बेहद
अमीर हैं. पर मुझ अकिंचन के प्रति आपने सदा संकुचन भाव ही रखा इसे बरतने में. बड़ी
बड़ी बातें माँ के सन्दर्भ में पढ़ती हूँ जो आप के समक्ष दम तोड़ देती हैं.
बचपन से मुझे पता है कि मैं आपकी चमन की एक
जंगली झाड़ हूँ जो खुद ब खुद पनप गयी आपकी कोख में. मुझे आज भी अफ़सोस है कि भ्रूण
परिक्षण के गलत नतीजे का मैं परिणाम हूँ. मेरे जन्म पर आपको सदमा सा लग गया था और
आपने हॉस्पिटल वालों पर बच्चा बदलने का आरोप लगाया था. मैं समझ सकती हूँ कि बेटा
जान आपने गर्भ में मेरी कितनी देखभाल की थी कि जन्म के पश्चात् आपके दूध पिलाने से
इनकार के बावजूद मैं जिन्दा रही.
वह तो बाद में मेरा भाई कृष्णा आपकी खुशियों का
तारणहार बन कर जन्मा तो आपकी बेनूर जाती जिन्दगी में रौनके-बहार आ गयी. कभी परदे
की ओट से तो कभी आपकी पीठ से सटी मैंने आपको लाड़-प्यार-दुलार का खजाना लुटाते देखा
है. पीठ के इस पार मैं आपकी शुष्क रुखी बेजान चोटी को पकड़ आपकी बाहों की गर्मी और
नरमी का कल्पना करती जो वास्तविकता में पीठ के उस पार भाई पर बरस रही होती.
जहाँ आप भाई को मनुहार करती रहती, उसे मुझसे
श्रेष्ठ सिद्ध करने में लगी रहती, वहीँ मैं आपको खुश रख सकूँ बस इसी आस में
जिन्दगी काट रही होती थी. जैसे आप कृष्णा के नाराज होने पर विचलित हो जाती थी पूरी
जिन्दगी मैंने उसी विचलन में काटी है कि आप मुझसे नाराज क्यूँ हैं. खाने-पीने और
पहनने ओढाने में आपने कोई भेद नहीं रखा, इसकी मैं शुक्रगुजार हूँ. पर आपके आँगन
में मैं एक स्नेह सिक्त बूँद को तरसती रह गयी. मैं सब भूल जाती यदि आप मुझे और पढ़ा
देतीं किसी लायक बना देती पर आपका सम्पूर्ण मकसद सिर्फ और सिर्फ मेरी शादी थी. दबी
जबान से मैंने आपसे और पढने की इच्छा भी जाहिर किया था. परन्तु आपने कहा कि अगले
वर्ष कृष्णा प्रतियोगी परीक्षाओं की तयारी करेगा उससे पहले मुझे निपटा कर आप
निश्चिन्त होना चाहतीं हैं. आपने कहा कि आप मेरी शादी और पढाई दोनों पर खर्च नहीं
कर सकतीं हैं.
‘माँ’ मैं आपसे माफ़ी मांगती हूँ कि मैंने बेटी
बन कर आपकी कोख से जन्म लिया. मुझे माफ़ कर दो माँ.
एक
खबर देनी थी आपको, जो शायद आपके लिए खुशगवार न हो. मैं एक बेटी की ‘माँ’ बन गयी
हूँ एक महीने पहले. उसदिन से आज तक मैं भगवान् को धन्यवाद दे रहीं हूँ कि बेटी के
रूप में उन्होंने शायद मुझे एक मौका दिया है. अपनी जिन्दगी के फैसलों पर तो न मेरा
कोई हक रहा है न ही कोई हित. अपनी बेटी को मैं वह सब कुछ दूंगी जिसके लिए मैं
तरसती रहीं हूँ प्यार, दुलार, विश्वास और शिक्षा ठीक वैसे ही या उससे भी ज्यादा
जैसे आपने कृष्णा को दिया है.
माँ, मैं सारे गिले-शिकवे भूल जाउंगी यदि कभी
आप मुझे पुकारेंगी या कभी कृष्णा उसी संकुचित भाव से व्यवहार करे आपसे जैसे आपने
मुझसे किया. मैं अपने संतान धर्म से कभी पीछे नहीं हटूंगी, ये मेरा सच्चा वादा है.
तब तक के लिए माँ आज्ञा दो.
मौलिक व् अप्रकाशित
द्वारा रीता गुप्ता
RITA GUPTA
c/o Mr. B.K. Gupta, Flat
no 5, Manjusha building, Chote Atarmuda, Near Indian School, SECL Road,
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