हौसलों के पखों पर सपनों की उड़ान प्रभात खबर ३०/०७/२०१७

हौसलों के पखों पर सपनों की उड़ान
केस स्टडी-१
नन्हे रोहन को आज क्लास टेस्ट में कुछ कम नंबर आये थें, मम्मी का पारा गरम हो गया क्यूंकि उन्होंने उसे वह पढाया था. आती हुई चीज वह गलत कर आया था. शाम तक मम्मी उसे अक्षित की कहानियाँ सुनाती रहीं जो पडोसी होने के साथ उसका क्लासमेट भी था. जो हमेशा उससे ज्यादा नंबर लाता था और उसकी माँ कम पढ़ी लिखी थी. रोहन डर और शर्म से मम्मी को वो बातें बता ही नहीं पाया जो आज स्कूल में कविता पाठ में प्रथम आने पर प्रिंसिपल सर ने उसके विषय में कही थी.

केस स्टडी-२
हमेशा माँ की टोका-टाकी और दबंग व्यवहार ने रागिनी के व्यक्तित्व को विकसित नहीं होने दिया था. एक हीन भावना और अवसाद से वह हमेशा घिरी रहती थी. बचपन में माँ के कहे कई बोल बाद के भी कई बरसों तक उसको जीने नहीं देते थे, “तुम बिलकुल मंदबुद्धि हो, तुमसे तेज तुम्हारा छोटा भाई है, तुम कुछ कर ही नहीं सकती, शादी कर तुमसे छुट्टी पाऊं ......” वही रागिनी पैंतालिस-पचास की अवस्था आते आते एक प्रतिष्ठित लेखिका के रूप में नाम कमाने लगी. इसका श्रेय वह अपने बच्चों और पति को देती जिनकी सतत प्रोत्साहन से वह उस ढलती उम्र में उस हीन भावना को विजित कर पाई जिसकी बीज उसकी माँ ने उसके मानस में बचपन में रोप दिया था.
 माता-पिता के रूप में हमारा ये कर्तव्य है कि हम अपने बच्चों की हमेशा हौसला-आफजाई करें. हर बच्चे को महसूस होनी चाहिए कि वह अपने माता-पिता के लिए ख़ास है. ये विश्वास होनी चाहिए कि यदि उसके नंबर कम भी आतें हैं तब भी उसके पेरेंट्स उसको उतना ही प्यार करतें रहेंगे. सच मानिये आपके द्वारा दिया गया विश्वास का ये भरोसा उसे जीवन में बड़ी से बड़ी बाधाओं को पार करने की हिम्मत प्रदान करेगी.

   दूसरों के अच्छें उदाहरण अवश्य दें, बच्चों को अपने आस-पास और परिवार के सफल लोगो की कहानियाँ अवश्य सुनाएँ इससे उन्हें अपने लिए एक रोल मॉडल चुनने में भी मदद मिलेगी जिन्होंने लगभग उसकी ही जैसी परिस्तिथियों में रहते हुए सफलता प्राप्त की. परन्तु भाई-बहन या सहपाठी के उदाहरण देते वक़्त थोड़ी वाक्-चातुर्य से काम लें, अन्यथा हमेशा के लिए एक घृणा और इर्ष्या का भाव जागृत हो जायेगा उनसे. स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना को प्रबल करें. बच्चे को उसकी दस अच्छाइयाँ बताने के बाद एकाध दूसरों की बताएं न कि अनवरत दूसरों की बड़ाई करते हुए उसे नीचा दिखाएँ. हमसब ने अल्बर्ट आइन्स्टीन की कहानी सुनी होगी. बचपन में उनके स्कूल से ये लिख कर आया था कि आपका बच्चा मंद बुद्धि है और इसलिए हम उसे स्कूल से निकाल रहें. परन्तु उनकी माँ ने उन्हें बताया कि लिखा है आपका बच्चा इतना बुद्धिमान है कि ये स्कूल उसके लायक नहीं है. समय के साथ उनकी माँ का ये विश्वास रंग भी लाया. Jean Piaget ने अपनी किताब The Psychology of the Child में लिखा भी है कि बच्चे का दिमाग गीली मिटटी की तरह होता है, जहाँ  माँ-बाप द्वारा बोली जा रही बातें हमेशा के लिए दर्ज हो जाती है.

  जैसे रागिनी की माँ हमेशा उसे मंद-बुद्धि व् नकारा ही समझती थी और इसी कारण रागिनी बचपन में असफलताओं की दौर से गुजरती रही. समय के साथ उसके पति ने मनोचिकित्सक की मदद से उसके मन से इस ग्रंथि को दूर किया तो उसका व्यक्तित्व खिल कर निखर उठा परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी, शायद वह बचपन से ही उस सफलता की अधिकारिणी थी.
  Jean Piaget आगे कहतें हैं कि हौसला आफजाई का ये मतलब भी नहीं हैं कि आप बच्चों को असंभव हवाई स्वप्नों की दुनिया में पहुंचा दे जो यथार्थ से कोसो दूर हो. सच मानिये बच्चों की परवरिश बच्चों का खेल नहीं है पर यदि परवरिश सही हो गयी तो आपने जग जीत लिया.
“हौसले भी किसी हकीम से कम नहीं होते

हर तकलीफ में ताकत की दवा जो देते हैं”



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