थोड़ी सी जमीन सारा आसमान जून द्वितीय २०१६ में गृह शोभा में प्रकाशित

शीर्षक - थोड़ी  सी  जमीन  सारा  आसमान 
जून द्वितीय २०१६ में गृह शोभा  में  प्रकाशित  

( मुस्लिम लड़की की हिन्दू लड़के से शादी और तमाम उतार-चढ़ाव . पिता  ने बेटी  को  थोड़ी  सी जमीन  के रूप में  मौका दिया और बेटी ने सारा आकाश हासिल कर लिया  )
फरहा पांच सालों के अन्तराल के बाद अपने शहर  आ रही थी .. प्लेन से बाहर निकलते ही उसने जोर से एक लम्बा सांस लिया मानों बीते हुए पाँचों साल को इस एक सांस में जी लेगी  . गोद में बेटे को लिए वह बैगेज लेने बेल्ट की तरफ बढ़ी .हवाई अड्डा पूरी तरह से बदला हुआ दिख रहा था . बाहर निकल उसने टैक्सी किया और अपने पुश्तैनी घर की तरफ चलने को कहा जो हिन्दपीढ़ी मोहल्ले में था . इस बीच शहर ने काफी तरक्की कर लिया है .ये देख फरहा  खुश हो रही थी . रास्ते में कुछ माल्स और मल्टीप्लेक्स भी दिखे .सड़कें पहलें से साफ़ और चौड़ी दिख रहीं थी . जीन्स और आधुनिक पाश्चात्य कपड़ों में लड़कियों को देख उसे सुखद अनुभूति होने लगी . कितना बदल गया है उसका शहर ,उसे रोमांच हो आया .
    रेहान सो चुका  था,उसने भी पीठ सीट पर टिका टांगों को थोडा फैला दिया . लम्बी हवाई यात्रा की थकावट महसूस हो रही थी .आज सुबह ही सिडनी ,ऑस्ट्रेलिया से वह अपने बेटे के साथ दिल्ली पहुंची थी फिर वहां से यहाँ  के लिए फ्लाइट लिया था उसने . आना भी जरूरी था ,एक हफ्ते पहले ही अब्बू रिटायर हो कर वापस लौटे थे अपने घर में . अब सब कुछ एक नए सिरे से शुरू करना था .भले शहर अपना था पर लोग तो वही थे .इसी से फरहा कुछ दिनों के लिए मम्मा-अब्बू के पास रहने चली आई थी ताकि घर -गृहस्थी को नए सिरे से जमाने में उनकी मदद कर सकें .
   तभी टैक्सी वाले ने जोर से ब्रेक लिया तो उसकी तन्द्रा भंग हुई . उसने देखा कि टैक्सी  हिन्दपीढ़ी मोहल्ले में प्रवेश कर चुकी है .बुरी तरह से टूटी-फूटी सड़कों पर अब टैक्सी हिचकोले खा रही थी  .उसने खिड़की की कांच को नीचे  किया , एक अजीब सी  बू टैक्सी के अंदर पसरने लगी . किसी तरह अपनी उबकाई को रोकते हुए उसने झट से कांच चढा दिया .शहर की तरक्की ने अभी इस मोहल्ले को छुआ भी नहीं है .सड़के और संकरी लग रहीं थीं . इन सालों में कुक्कुरमुत्ते  से उग आये सटे सटे छोटे छोटे  एक दुसरे पर गिरते पड़ते  घर, मानो भूलभुलैयाँ बना दिया था मोहल्ले को . उसकी अब्बा की दो मंजिला मकान अलबत्ता सबसे अलग दिख रही थी .
       अब्बा और मम्मा बाहर ही खड़े थे .
"तुमने अपना फोन अभी तक बंद ही कर रखा है ,राकेश तबसे परेशान है कि तुम पहुंची या नहीं ?",मिलते ही अब्बू ने पहले अपने दामाद की ही बातें की .
अचानक महसूस हुआ बंद खिडकियों की दरारों से कई जोड़ी आँखे झाँकने लगीं हों .
 फ्रेश हो अब वह आराम से हाथ में चाय ले मुआयना करने लगी .घर का ,मोहल्ले का और रिश्तेदारों का .
एक २२-२३ साल की लड़की,सलमा  फुर्ती से सारे काम निपटा रही थी .
"कैसा लग रहा है अब्बू अपने घर में आ कर ? मम्मा पहले से कमजोर दिख रहीं हैं . पिछले साल सिडनी आई थी तो बेहतर थीं ," फरहा ने पूछा .
एक लम्बी सी सांस लेते हुए अब्बू ने कहा ,
  "कुछ भी नहीं बदला यहाँ . पर एक एक घर में  बच्चें जाने कितने बढ गएँ हैं .लोफर कुछ ज्यादा दिखने लगें हैं गलियों में .लडकियां आज भी उन्ही बेड़ियों में कैद हैं जिसमे उनकी माएं या नानी रहीं होंगी .तुम्हारी शादी की बात अलबत्ता लोग अब शायद भूल चलें हैं "
 फरहा ने कमरे में झाँका,नानी-नाती आपस में व्यस्त दिखे .
"अब्बू ! मुझे लग रहा था जाने रिश्तेदार और मोहल्ले वाले आपसे कैसा व्यवहार करें ,मुझे फिक्र हो रही थी आपकी सो मैं चली आई . अगले हफ्ते राकेश भी आ रहें हैं "
"फूफी के क्या हाल हैं .......",कहती फरहा अब्बू के पास आ कर बैठ गयी .
"अब छोड़ो भी बेटा,जो बीत गयी सो बात गयी,जाओ आराम करो .सफ़र में थक गयी होगी  ",अब्बू उठने लगे .
फरहा जा कर मम्मा के पास लेट गयी ,बीच में नन्हा रेहान नींद में मुस्कुरा रहा था .
पर आज नींद नहीं आ रही थी ,कमरे में चारों तरफ यादों के फूल और शूल मानों उग आयें हों .जहां मीठी यादें दिल को सहलाने लगी वहीँ कडवी शूल बन नस नस को बेचैन करने लगी .
   अब्बा   सरकारी नौकरी में उच्च पदस्त थें .जहां हर कुछ साल में तबादला निश्चित थी .काफी छोटी उम्र से ही फरहा को  हॉस्टल में रख दिया गया था ताकि उसकी  पढाई निर्बाध चले .. मम्मा हमेशा से बीमार थी पर अब्बू -मम्मा में मुहब्बत गहरी थी. अब्बू उस वक़्त पटना में पदस्थापित थे ,उन्ही दिनों फूफी उनके पास गयी थी .अब्बू के रुतबे और इज्जत  देख उनके दिल पर सांप लोट गए . और फिर उन्होंने शुरू किया अब्बू की  दूसरी निकाह का जिक्र , अपनी किसी रिश्ते की ननद के संग . मम्मा की  बीमारी का हवाला दे पूरे परिवार ने तब खूब अपनापन दिखा रजामंदी के लिए दबाव डाला था . अब्बू ने बड़ी मुश्किल से इन जिक्रों से पिंड छुड़ाया था .भला पढ़ा लिखा आदमी ऐसा सोच भी कैसे सकता है .ये सारी  बातें मम्मा ने फरहा को  बड़ी होने पर बताया था ,उसे  फूफी और घरवालों से नफरत हो गयी थी कि कैसे वो उसके  वालिद और वालिदा का घर उजाड़ने को थे .
  फरहा के  घर का माहौल उसके  रिश्तेदारों की तुलना में बहुत भिन्न थी  .उसकी अब्बू की सोच प्रगतिशील थी . वह अकेली संतान थी और उसके अब्बू उसके उच्च तालीम के जबरदस्त हिमायती थे .उस से छोटी उसकी चचेरी और मौसेरी बहनों का निकाह उससे पहले हो गया था .जब भी कोई पारिवारिक आयोजन होता उस की  निकाह के चर्चे ही केंद्र में  होता .ये तो अब्बू की  ही जिद्द थी कि उसे इन्जिनीरिंग  के बाद नौकरी नहीं करने दिया बल्कि मैनेजमेंट की पढाई के के लिए प्रोत्साहित किया .
    देश लौटने के बाद से ही फरहा यादों की दरिया में गोते खा रही थी .उसे याद हो आया जब वह इन्जिनीरिंग के फाइनल वर्ष में थी और फूफी फिर घर आई थी . आते ही अम्मा  से फरहा की बढती उम्र का जिक्र शुरू कर दिया था .
"भाभी जान मैं कहे देती हूँ ,फरहा की उम्र इतनी हो गयी है कि अब जान पहचान में उसके लायक कोई कुंवारा लड़का नहीं  ही मिलेगा . भाईजान की तो अक्ल ही मारी गयी है .भला लड़कियों को इतनी तालीम की क्या जरूरत है ? असल मकसद उनकी शादी है . अब देखो मेरा बेटा  फेरोज .कितना खूबसूरत और गोरा चिट्टा है .जब से दुबई गया है माशा अल्लाह खूब कमा भी रहा है ,दोनों की जोड़ी खूब रहेगी . "
बेचारी अम्मू रिश्तेदारो  की बातों से यूं ही हलकान रहती थीं ,फूफी की  बातों ने उनके रक्तचाप को और बढ़ा दिया .वो तो  अब्बू जी ने जब सुना तो फूफी को अच्छा  सुनाया,
" क्यूँ रजिया तुमने क्या मैरेज ब्यूरों खोल रखा है कभी मेरी तो कभी मेरी बेटी की चिंता करती रहती हो ?इतनी  चिंता अपने  बड़े लाडले की होती तो उसे दसवीं फेल हो दुबई में पेट्रोल पंप पर नौकरी नहीं करनी होती . फरहा की तालीम अभी अधूरी है .मेरी प्राथमिकता उसकी शादी नहीं तालीम है "
फूफी उसके बाद रूक नहीं पायी थी ,हफ्तों रहने की सोच कर आने वाली शाम की बस से वापस लौट गयीं .
सोचते सोचते वह कब सो गयी उसे खुद पता नहीं चला .
सुबह रेहान की आवाजों से उसकी नींद खुली ,
"फरहा बाज़ी आप उठ गयीं ,चाय लाऊं ? ",मुस्कुराती हुई सलमा ने पूछा .चाय का कप पकड़ा सलमा उसके पास ही बैठ गयी .फरहा ने महसूस किया कि वह उसे बड़ी ध्यान  से देख रही है .
"बाज़ी अब तो आप सिन्दूर लगाने लगी होंगी और बिंदिया भी ? क्या आप अभी भी रोजे रखती हैं ?क्या आपने अपनी नाम को भी बदल लिया है ?आपा अब तो आप बुतों को सलाम करतीं होंगी ?"
सलमा की इन बातों पर  फरहा हंस पड़ी .
" नहीं मैं तो बिलकुल वैसी ही हूँ जैसी थी ,वहीँ करती हूँ जो बचपन से करती आ रही .तुम्हे ऐसा क्यूँ लगा ?"
"जी कल मैं जब काम कर लौटी तो मोहल्ले में सब पूछ रहे थे .आपने काफ़िर से शादी किया है ना ?"सलमा ने मासूमियत से पूछा .
फरहा के अब्बू ने फूफी को तो लौटा दिया था पर विवाद थमा नहीं था, आये दिन उसकी तालीम ,बढती उम्र और निकाह पर चर्चे होने लगे .धीरे-धीरे  अब्बू ने अपने पुश्तैनी घर आना कम कर दिया .फरहा अपनी मैनेजमेंट की पढाई के लिए देश की सर्वश्रेष्ठ कॉलेज के लिए चुनी गयी .अब्बू के चेहरे की सुकून ही उसका सबसे बड़ा पारितोषिक था .कॉलेज में यूं ही काफी कम लड़कियां थीं ,तिस पर मुस्लिम लड़की वो अकेली थी अपने बैच में .फरहा काफी होनहार थी ,कॉलेज में बहुत सारी गतिविधियाँ होती रहती थी और वह सब में काफी बढचढ हिस्सा लेती .सब उसके कायल थे .इसी दौरान राकेश के साथ उसे कई प्रोजेक्ट पर काम करने को मिला .उसकी बुद्धिमानी और शालीनता धीरे धीरे फरहा को अपनी ओर आकर्षित भी करने लगी . संयोग से  दोनों साथ ही समर - इंटर्नशिप के लिए  एक ही कंपनी के लिए चुने भी गए .नए शहर में उन दो महीनो में दिल की बातें जुबान पर आ ही गयी .दुनिया इतनी हसीं कभी ना थी .
 इंटर्नशिप के बाद फरहा एक हफ्ते के लिए अब्बू -मम्मा से मिलने दिल्ली चली गयी .अब्बू की पोस्टिंग उस वक़्त वहीँ थी . अब्बू काफी खुश दिख रहे थे ,
"फरहा कुछ महीनों में तुम्हारी पढाई पूरी हो जाएगी .मेरे मित्र रहमान अपने सुपुत्र के लिए तुम्हारा हाथ मांग रहें हैं .मुझे तो उनका बेटा  और परिवार सब बहुत ही पसंद हैं . पर मैंने कह रखा है कि फैसला मेरी बेटी ही लेगी ."
उस एक पल में फरहा के नस नस में एक तूफ़ान सा गुजर गया ,फिर खुद को संयत करते हुए उसने कहा,
" आप जो फैसला लेंगे वो सही होगा अब्बुजी "
"शाबास बेटा तुमने मेरी लाज रख दी .सब कहतें थें कि  इतना पढ़ लिख कर तुम भला मेरी बात क्यूँ मानोगी . मैं जानता था कि मेरी बेटी मुझ से अलग नहीं है .मैं कल ही रहमान को परिवार के साथ खाने पर बुलाता हूँ ".
  सपना देखना अभी शुरू भी नहीं हुआ था कि नींद खुल गयी .फरहा रात भर रोती रही,बहतें अश्कों ने बहुत सारे संशय को सुलझा लिया. राकेश और वो नदी के दो किनारें हैं. विचारों और बौद्धिकता का मेल शायद हकीकत में अस्तित्व ही नहीं रखतें हैं .फरहा  ने सोचा कि ये तो अच्छा हुआ कि उसने अब्बुजी को अपनी भावनाओं के बारे में नहीं बताया .वैसे ही वो घर -समाज से लड़ मुझे उच्च तालीम दिला रहें हैं . अगर मैंने एक हिन्दू -काफ़िर से ब्याह की बात भी की , तो शायद आने वाले वक़्त में  अपनी बेटी-बहन को मेरी मिसाल दे उनसे  शिक्षा का हक भी  छीना जायेगा .उसे सिर्फ अपने लिए नहीं सोचना चाहिए ,फरहा  मन को समझाने लगी  .
दूसरे दिन ही रहमान साहब अपने सुपुत्र और बीवी के साथ तशरीफ़ लायें . ऐसा लग रहा था मानो सिर्फ औपचारिकता ही पूरी हो रही थी ,सारी बातें पहलें से तय थीं . अब्बू-मम्मा के   हँसते चेहरों  को देख उसने बड़ी सफाई से अपनी अश्रूओं को दृगों में रोक लिया .
  "समीना आज मुझे लग रहा है कि मैंने फरहा के प्रति अपनी सारी  जिम्मेदारियों को लगभग पूरा कर लिया है .आज मैं बेहद खुश हूँ . निकाह फरहा की पढाई पूरी करने के बाद ही करेंगे .तभी सारे रिश्तेदारों को बताएँगे ",   अब्बू मम्मा  को बोल रहें थें .
दो दिनों के बाद वह अपने कॉलेज अहमदाबाद लौट गयी .लग रहा था राकेश मिले तो उसके कंधे पर सर रख खूब रोये .पर राकेश सामने पड़ा तो वह भी बेहद उदास और उलझा हुआ सा दिखा .फरहा अपना गम भुला राकेश के उतरे चेहरे के लिए परेशान हो गयी .
" फरहा ,मैंने घर पर  तुम्हारे बारे में बात किया . पर तुम्हारा नाम सुनते ही घर में बवाल मच गया .मैंने भी कह दिया है कि मैं तुमको छोड़ किसी से शादी कर ही नहीं सकता .इस बार सब से लड़ कर आया हूँ ".राकेश ने कहा तो फरहा ने भी कहा ,कि उसकी हालत भी बकरीद पर हलाल होने वाले बकरें से बेहतर नहीं .
दोनों मित्र तो थें ही फिर हर प्रोजेक्ट -हर असाईंनमेंट अभी तक दोनों ने साथ ही किया था सो अभी भी  करतें रहें पर हाँ एक  रेखा तो खिंच ही गयी थी दोनों के बीच .
वक़्त गुजरा, फरहा और राकेश दोनों की नौकरी दिल्ली में ही लगी .दोनों अब तक मान चलें थे कि एक हिन्दू लड़का और मुस्लिम लड़की की शादी मुकम्मल हो ही नहीं सकती .पर नियति के खेल को कोई जानता नहीं .

           फरहा के निकाह की तारीख कुछ महीनों बाद की  ही थी .एक दिन फरहा अपने अब्बू और मम्मा के साथ कार से गुडगाँव की तरफ जा रही थी कि सामने से आती एक बेकाबू ट्रक ने जोर से धक्का दे दिया . तीनो को गम्भीर चोटें आयीं .बेहोश होने के पहले फरहा ने राकेश को फोन कर दिया था .
अब्बू और मम्मा को तो हलकी चोटें आयीं पर फरहा के चेहरे पर काफी चोटें आयीं थीं, नाक और ठुड्डी की तो हड्डी ही टूट गयी थी ,पूरे चेहरे पर पट्टियां थीं .रहमान साहब और उनका परिवार भी आया हॉस्पिटल में और सब बेहद अफ़सोस जाहिर कर रहें थें .
उसका होने वाला शौहर सबके सामने ही डॉक्टर से पूछ बैठा कि क्या फरहा पहले की तरह ठीक हो जाएगी तो डॉक्टर ने कहा कि इसकी उम्मीद बहुत कम है कि वह पहले वाला चेहरा वापस पा सकेगी ,हाँ शरीर का बाकी हिस्सा बिलकुल स्वस्थ हो जायेगा .शायद प्लास्टिक सर्जरी के बाद कुछ बदलावों के साथ वह एक नया चेहरा पा सकेगी .जिसमें बहुत वक़्त लगेगा . वह दिन और आज का दिन रहमान परिवार फिर मिलने भी नहीं आयें ,अलबत्ता निकाह  तोड़ने की खबर जरूर फोन पर दे दिया .
 दुःख की घडी में उनका यूं रिश्ता तोड़ देना बेहद पीड़ादायक था .अब्बू मम्मा जितना दुर्घटना से आहत नहीं हुए थे उतना उनके व्यवहार से हुए .ये तो अच्छा था कि किसी रिश्तेदार को खबर नहीं हुई थी वरना और भद्द होती .फिलहाल सवाल फरहा के ठीक होने का था . इस बीच राकेश उनका संबल बना रहा .हॉस्पिटल,घर ,ऑफिस और फरहा के अब्बू मम्मा सबको संभालता वह उनके घर का एक सदस्य ही हो गया .
उस दिन अब्बू ने हॉस्पिटल के कमरे के बाहर सुना,
"फरहा प्लीज रो मत .तुम्हारी पट्टियाँ कल खुल जाएँगी .मैं हूँ ना ,मैं तुम्हारे लिए जमीन आसमान एक कर दूंगा .जल्द ही तुम ऑफिस जाने लगोगी ."
"मुझसे कौन शादी करेगा ?",ये फरहा की आवाज थी .
"बन्दा  सालों से इन्तेजार कर रहा है .अब तो माँ भी हार कर बोलने लगी हैं कि कुंवारा रहने से बेहतर है जिस से मन हो कर लो शादी .पट्टियाँ खुलने दो एक दिन माँ को ले कर आता हूँ "
   राह के कांटे धीरे धीरे दूर होते गए . राकेश के घरवाले ,इतनी होनहार और उच्च शिक्षित बहु पा कर निहाल थे . उसके गुणों ने उसकी दुर्घटना ग्रस्त चेहरे की ऐब को ढक दिया था . निकाह की नियत तारीख पर ही दोनों का कोर्ट मैरिज हुआ और फिर हुआ एक भव्य रिसेप्शन जिसमें दोनों तरफ के रिश्तेदारों को खबर कर दिया गया था .दोनों ही तरफ से परिवार के लोग न के ही बराबर शामिल हुए ,हाँ दोस्त -कुलीग सब के शामिल हुए .कुछ ही दिनों के बाद राकेश की कंपनी ने उसे सिडनी भेज दिया . दोनों वहीँ चले गए और खूब तरक्की करने लगें .
   फरहा की शादी के बाद अब्बू एक बार अपने शहर ,अपने घर गएँ थें . पर मोहल्ले के लोगों ने उन की खूब खबर लिया था.कुछ बुजुर्ग लोग आ कर उन्हें डांट भी पिलाया  .रात उन के  घर पर पथराव भी किया . किसी तरह पुलिस बुला अब्बू और मम्मा घर से निकल पायें थें .

  "अब्बुजी आप किस से  बातें कर रहें थें ?",फरहा ने पूछा .
"अरे !तुम्हारी फूफी जान थीं .बेचारी आती रहती हैं ,मुझसे मदद लेने .बेटे तो उनके सारे नालायक हैं ,कोई जेल में तो कोई लापता .बेचारी के भूखों मरने वाले दिन आ गएँ हैं ",अब्बुजी ने कहा .
"फरहा उस रात हमारे घर पर इन्ही ने पथराव करवाया था अपने नालायक बेटों से . हमने तुम्हारी शादी इनके बेटे से जो नहीं कराई  थी ,सारे मोहल्ले वालों को भी  इन्होने ही उकसाया था . बहुत  साजिश किया इन्होने हिन्दू-लड़के  से तुम्हारी शादी करने के हमारे फैसले के खिलाफ   ",मम्मा ने हँसते हुए कहा .
" ये जो सलमा हैं ना ,इस वर्ष वो दसवीं की परीक्षा दे रही है . वो भी तुम्हारी तरह तालीमयाफ्ता होने की चाहत रखती है ".
"सिर्फ मैं ही क्यूँ मोहल्ले की हर लड़की आपके जैसी ही होनी चाहती है ",ये सलमा थी .
 "काश कि सबके अब्बू आपके ही जितने समझदार होतें ",कहते फरहा उनके गले लग गयी .


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