द्धावस्था और अकेलापन – जिम्मेदार कौन, एक पड़ताल लाइव डिस्कशन (व्हाट्स एप ग्रुप में एक खबर पर हुई डिस्कशन पर आधारित. सर जी के निर्देश पर तैयार की गयी) चाय के साथ अखबार पढना मेरी दिनचर्या की प्रथम गतिविधि होती है. वह भी मैं पहले खेल समाचारों से शुरुआत करती हूँ क्यूंकि अंत में प्रथम पृष्ठ की नकारात्मकता और विकृत सच्चाइयों से रूबरू होना ही होता है. आज सुबह खेल समाचार पढ़ते हुए मैंने आखिरी पन्ने पर जैसे ही नज़र दौड़ाई तो एक समाचार पढ़ कर मन ख़राब हो गया. खबर ही कुछ ऐसी थी, “रिटायर्ड निर्देशक का शव बेटे का बाट जोहता रह गया”. एक समय महत्वपूर्ण पद पर आसीन व्यक्ति, जिसकी पत्नी मर चुकी थी एक वृद्धाश्रम में रह रहा था. उनका एकमात्र बेटा विदेश में जा बसा था. जिसे खबर ही एक दिन के बाद मिल सकी और जिसने तुरंत आने में असमर्थता जाहिर किया. देश में बसे रिश्तेदारों ने भी मुखाग्नि देने से इनकार कर दिया. आश्रम के सरंक्षक ने मुखाग्नि दिया. एक समय पैसा पॉवर और पद के मद में जीता हुआ व्यक्ति अंतिम दिनों में वृद्धाश्रम में अजनबियों के बीच रहा और अनाथों...